भोपाल: राजधानी की सेंट्रल जेल के 42 बंदी पैरामेडिकल का कोर्स कर रहे हैं। तीन महीने का कोर्स करने के बाद ये बंदी जेल अस्पताल में इलाज में डाॅक्टरों का सहयोग करेंगे। शुरूआत में बंदी इंजेक्शन लगाना और ड्रेसिंग का कोर्स कर रहे हैं। इनकी जेल में ही क्लास लगती हैं, जहां टीचर पहुंचकर उन्हें पढ़ाते हैं। दो महिला बंदी भी इसमें शामिल हैं। तीन महीने के कोर्स के लिए बंदियों का बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रेशन हुआ है। जेल प्रबंधन का दावा है कि राजधानी की सेंट्रल जेल, देश की पहली जेल हैं, जहां के बंदी पैरामेडिकल का कोर्स कर रहे हैं। भविष्य में इस कोर्स का विस्तार किया जाएगा।
बंदी सुधार की दिशा में जेलों में उनके लिए पढ़ाई और रोजगार की व्यवस्था की गई है। जेल में रहकर बंदी ट्रेनिंग करके कई हुनर सीखते हैं। जेल से रिहा होने के बाद उन्हें रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़े और वे परिवार की परवरिश कर सकें, इसके तहत बंदी सुधार के लिए ओपन जेल भी बनाई जा रहीं है।
राजधानी की सेंट्रल जेल ने आजीवन कारावास के बंदियों के लिए पैरामेडिकल कोर्स शुरू किया है। यह कोर्स बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी द्वारा कराया जा रहा है, जो कि नि:शुल्क होगा। बंदी इंजेक्शन लगाना और ड्रेसिंग करना सीख रहें हैं। यह कोर्स एक जून से शुरू हुआ है। जिसमें 21-21 बंदियों के दो बेच बनाए गए हैं। बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी लेक्चर होते हैं।
जेल अधीक्षक दिनेश नरगावे के अनुसार आजीवन कारावास की सजा काट रहे बंदी यह कोर्स कर रहे हैं। इनमें वे बंदी शामिल हैं जिनका आचरण अच्छा रहा और पांच से दस साल की सजा काट चुके हैं। साथ ही इन बंदियों का एक ही अपराध है, इसके अलावा कोई रिकाॅर्ड नहीं है। कोर्स के लिए कम से कम 10वीं पास होना अनिवार्य है। जेल में ही बंदियों को इंग्लिश सिखाई जा रही है।
जेल अस्पतालों में बंदियों के इलाज की व्यवस्था है। यहां डाॅक्टर तो हैं। लेकिन पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। जिस कारण बंदियों के उपचार में दिक्कत होती है। बंदियों के पैरामेडिकल का कोर्स करने से जेल अस्पताल में यह समस्या खत्म होगी।बंदी रिहा होने के बाद अस्पतालों में काम करके अपने परिवार की परवरिश भी कर सकेंगे। राजधानी में ओपन जेल खुलने के बाद इन बंदियों को उसमें रखा जाएगा। जहां से ये बंदी प्राइवेट अस्पताल एवं मेडिकल काॅलेज में काम कर सकेंगे।