Home आर्टिकल बढ़ते बाघों ने प्रदेश के दोगुने फारेस्ट बीट क्षेत्र में कायम किया...

बढ़ते बाघों ने प्रदेश के दोगुने फारेस्ट बीट क्षेत्र में कायम किया राज….

53
0
SHARE

अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस इस साल मध्यप्रदेश में खुशियों की सुगबुगाहट लेकर आया है। अखिल भारतीय बाघ आंकलन 2018 के प्रथम चरण के आंकड़ों में बाघों की संख्या काफी बढ़ने के आसार दिखने लगे हैं। वर्ष 2014 के प्रथम चरण के आकलन में प्रदेश की 717 फॉरेस्ट बीट में 308 बाघों की उपस्थिति पायी गयी थी। इसके विरूद्ध वर्ष 2018 में 5 फरवरी से 26 मार्च तक चार चक्रों में हुए आंकलन में 1432 बीट में बाघ की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं। बाघ अपनी स्वतंत्र टेरिटरी बनाता है। बाघों की संख्या बढ़ने से शावक से नए बाघ में विकसित हुए बाघों ने नए-नए क्षेत्रों का रूख किया। वन विभाग के बाघ बहुसंख्य इलाकों से संजय गांधी, पन्ना, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व आदि में बाघों की शिफ्टिंग से भी बाघों की आपसी वर्चस्व लड़ाई टलने के साथ नए जोड़े बने हैं। वन विभाग के साथ-साथ वन्य-प्राणी संरक्षण में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े़ नागरिकों और गैर-सरकारी संगठनों का भी इसमें योगदान है।

अखिल भारतीय बाघ आंकलन के दौरान फेस-1 में भारत में 21 राज्यों के लगभग 30 हजार बीट में आंकड़े इकट्ठे किये गये हैं। इनमें से 9 हजार बीट अकेले मध्यप्रदेश में है। प्रदेश में इसकी तैयारी लगभग एक साल पहले फरवरी 2017 में ही शुरू कर दी गयी थी। प्रदेश को सात जोन में बांटते हुए प्रत्येक जोन में मास्टर ट्रेनर्स को प्रशिक्षित किया गया है। प्रत्येक वन मण्डल से तीन-तीन मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षित करते हुए पूरे प्रदेश में 250 मास्टर ट्रेनर्स बनाये गये हैं। बाघ आंकलन के पहले के कई चरणों में मॉक एक्सरसाईज और प्रशिक्षण हुआ। इस बार की गणना मे त्वरित सूचनाओं के आदान-प्रदान में सोशल मीडिया का उपयोग भी शामिल किया गया है। एक साल चली तैयारी का सुखद परिणाम आना शुरू हो गया है।

राज्य शासन ने वन्य-प्राणियों द्वारा जन-हानि और जन-घायल प्रकरणों में मुआवजा राशि में वृद्धि की है। बाघ आदि वन्य-प्राणी द्वारा अब जन-हानि में 4 लाख रूपये की राशि दी जाती है। पहले पशु घायल प्रकरणों में मुआवजे का प्रावधान नहीं था। अब पशु घायल प्रकरणों में भी मुआवजे का प्रावधान किया गया है। घायल व्यक्ति को अस्पताल में उपचार के अतिरिक्त 500 रूपये प्रति दिन देने का प्रावधान किया गया है। जन-हानि, जन-घायल और पशु-हानि प्रकरणों को लोक-सेवाओं के प्रदान गारंटी अधिनियम 2010 में शामिल करना भी एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ है।

बाघों को पूर्ण आहार मिले, इसके लिये वन विभाग ने प्रदेश के टाइगर रिजर्व में न केवल बहुतायत वाले क्षेत्रों से शाकाहारी प्राणियों की शिफ्टिंग की है बल्कि टाइगर रिजर्व में खाली हुए गाँवों में वैज्ञानिक प्रबंधन द्वारा घास उत्पादन भी शुरू किया जा रहा है। पौष्टिक आहार और घास मिलने से शाकाहारी प्राणियों की संख्या काफी बढ़ी है और टाइगर रिजर्व में बाघों को भरपूर आहार मिल रहा है। प्रदेश में टाइगर रिजर्व और उनके बाहर के वन क्षेत्रों में भी वन्य-प्राणी की बहुतायत है। वन्य प्राणियों के संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ने के लिये कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है। वन्य-प्राणियों के प्रबंधन के लिये राज्य शासन ने एक विशेष बजट मद निर्धारित किया है। इससे संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्य-प्राणी प्रबंधन के लिये राशि उपलब्ध करायी जा रही है।

प्रदेश में औद्योगिकीकरण और जनसंख्या वृद्धि के साथ प्रदेश में वन्य-प्राणियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इससे मानव-वन्य-प्राणी टकराव की घटनाएँ भी सामने आने लगी हैं। इनसे निपटने के लिये प्रदेश में वन्य-प्राणी रेस्क्यू स्क्वॉड की स्थापना की गई है। प्रदेश में कार्यरत 15 रीजनल रेस्क्यू स्क्वॉड ने पिछले सालों में मानव-वन्य प्राणी टकराव टालने में बड़ी भूमिका अदा की है। कई बार ऐसी विषम परिस्थितियों में स्क्वॉड ने वन्य-प्राणी और नागरिक दोनों को सुरक्षित निकाल लिया है।

टाइगर रिजर्व क्षेत्रों से गाँव की पुनर्स्थापना की गई है। पुनर्स्थापित ग्रामवासियों को 1000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि उपलब्ध करवाई गई है। इससे बाघों की सुरक्षा बढ़ी है और ग्रामवासी विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके हैं।

बाघों की सुरक्षा में वन विभाग द्वारा स्थापित की गई एसटीएफ टीम की महत्वपूर्ण भूमिका है। एसटीएफ ने पिछले सालों में वन्य-प्राणी अपराधियों को पकड़ने, उन्हें न्यायालय से सजा दिलवाने और वन्य-प्राणी अपराध तंत्र को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एसटीएफ के कार्यों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है। इंटरपोल जैसी संस्था ने भी कई बार मध्यप्रदेश की वन एसटीएफ टीम की कार्यवाही को सराहा है।

मध्यप्रदेश टाइगर फाउण्डेशन सोसायटी और मध्यप्रदेश ईको पर्यटन बोर्ड द्वारा बाघ सुरक्षा से संबंधित जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में बच्चों की भागीदारी ने वन और वन्य-प्राणियों के प्रति नवाचारी संवेदनशीलता और आत्मीयता स्थापित की है। टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाले समुदायों को विभिन्न कार्यक्रमों से जोड़कर उनकी आय के साधन भी बढ़ाये जा रहे हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here