राज्यपाल आचार्य देवव्रत जो संयुक्त राज्य अमेरिका के दौरे पर हैं ने आर्य प्रतिनिधि सभा अमेरिका द्वारा आयोजित 28वें आर्य महाधिवेशन को सम्बोधित करते हुए कहा कि आर्य समाज मजबूत नैतिक मूल्यों तथा शांतिपूर्ण एवं सकारात्मक जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित करता है।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से है और हमें अपनी परम्पराओं को कायम रखते हुए समय के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमें वह हर नई चीज सीखनी चाहिए जो विकास में सहायक है और समय के साथ आगे बढ़ने तथा भविष्य के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि सहानुभूति, करूणा, संवेदनशीलता और एकत्व, भाईचारा, समाज में शांति, मानवीय मूल्यों की शिक्षा ही हमारी सभ्यता की शानदार विशेषताएं है।
उन्होंने कहा कि आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा 1875 में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए की गई थी। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द सरस्वती मजबूत सांस्कृतिक तथा संगठित भारत की आधारशिला थे और उनकी शिक्षाएं वर्तमान परिपेक्ष्य में अधिक प्रासंगिक हैं। आर्य समाज की स्थापना वेदों में वर्णित पौराणिक ज्ञान का प्रचार करने के लिए की गई थी। उन्होंने कहा कि सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द द्वारा लिखित महान ग्रंथ है तथा उन्होंने इस महान ग्रंथ की रचना मानव जाति के कल्याण के लिए की थी।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य विश्व कल्याण है तथा प्रत्येक व्यक्ति का उद्देश्य शारीरिक, आध्यात्मिक तथा समाज की भलाई के लिए काम करना है। प्रत्येक व्यक्ति के प्रति हमारा व्यवहार, स्नेह, सच्चाई, न्याय के द्वारा निर्देशित होना चाहिए।
आचार्य देवव्रत ने आर्य प्रतिनिधि सभा अमेरिका द्वारा इस बड़े महासम्मेलन के आयोजन के लिए किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इन आयोजनों से वेदों में वर्णित सिद्धान्तों आपसी सौहार्द, न्याय, सच्चाई को बल मिलता है जबकि नस्लीय व जातीय भेदभावों जैसी सामाजिक विषमताओं से दूर रहने की शक्ति मिलती है।
आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, राज्यपाल के ओएसडी डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार, डॉ. विजय विद्यालंकार, आचार्य ब्रहम देव, मुकुन लाल, डॉ. बलवीर आचार्य, डॉ. सुश्रुत सामाशर्मी तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखें।
प्रतिभागियों, वैदिक विशेषज्ञों, योग विशेषज्ञों के अलावा दुनियाभर से आए वक्ताओं ने इस महाअधिवेशन में अपने विचार रखें।