अपने देश में चंद्रग्रहण को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं लेकिन विज्ञान की नजर से देखें तो यह एक सिफ खगोलीय घटना है जिसमें चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है। चंद्र ग्रहण क्यों होता है? और इसके पीछे क्या राह है? इस सभी बातों का जवाब चंद्रग्रहण कथा से मिलता है।
चंद्रग्रहण की कथा : पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि की रचना से पहले समुद्र मंथन होता है। इस मंथन में अमृत निकलता है जिसे पीने के लिए देवताओं और दानवों में विवाद छिड़ जाता है। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु मोहनी की रूप धारण कर लेते हैँ और देवताओं को लाइन में बैठाकर अमृत पिलाने लगते हैं। इस लाइन में छलपूर्वक एक दानव राहु भी बैठा जाता है और अमृत पान करता है। राहु को ऐसा करते हुए सूर्य और चंद्रमा देख लेते हैं तो वे भगवान विष्णु को इस बात की जानकारी देते हैं। इस पर भगवान विष्णु राहु का सिर काटकर उसे धड़ से अलग कर देते हैं। सिर वाले भाग को राहु और धड़ को केतु नाम से जानते हैं। मान्यता है कि इस घटना से राहु सूर्य और चंद्रमा को अपना दुश्मन मानने लगता है। चूंकि उसने अमृत पी लिया था तो उसकी मौत नहीं हुई थी। पूर्णिमा के दिन राहु जब चंद्रमा को ग्रसता है तो चंद्रमा कुछ देर के लिए छिप जाता है जिसे चंद्रग्रहण कहते हैं। सिर और धड़ के अलग होने से पहले इस दावन का नाम स्वर्भानु नाम था। ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह के नाम से भी जाना जाता है।
विज्ञान का मत:
खगोलशास्त्र के अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आती है तो चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है और वह दिखाई नहीं देता इसी स्थिति को चंद्र ग्रहण कहते हैं। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी की चक्कर लगाता रहता है इसलिए वह ज्यादा देर के लिए पृथ्वी की छाया में नहीं रुकता और कुछ ही देर में पृथ्वी की छाया से बाहर आ जाता है। जब चंद्रमा का पूरा या आंशिक भाग पृथ्वी से ढक जाता है और सूरज की किरणें चंद्रमा पर नहीं पहुंचतीं। ऐसी स्थिति में चंद्रग्रहण होता है।