वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि भारत अगले साल ब्रिटेन को पछ़ाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
उन्होंने यहां कहा कि इस साल आकार के लिहाज से हमने फ्रांस को पीछे छोड़ा है। अगले साल हम ब्रिटेन को पीछ़े छोड़ देंगे। इस तरह हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।
वित्त मंत्री ने कहा कि दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की रफ्तार धीमी है। उन्होंने कहा कि भारत में अगले 10 से 20 साल में दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में आने की क्षमता है।
याद दिला दें कि केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने बीते रविवार को कहा था कि वृद्धि दर तेज करने की यूपीए सरकार की नीतियों ने वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा कर दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि 2004-08 तक का दौर वैश्विक आर्थिक तेजी का दौर था और उसका फायदा भारत समेत सभी अर्थव्यवस्थाओं को मिला था।
जेटली ने जीडीपी की नई श्रृंखला की पिछली कड़ियों के अनुमानों पर ताजा रिपोर्ट को लेकर छिड़ी बहस में हस्तक्षेप करते हुए फेसबुक पर एक लेख में कहा था कि राजकोषीय अनुशासन के साथ समझौता किया गया और बैंकिंग प्रणाली को अंधाधुंध कर्ज बांटने की जोखिमभरी सलाह दी गई और यह नहीं देखा गया कि अंतत: इससे बैंक खतरे में पड़ जाएंगे। उस पर भी 2014 में जब यूपीए सरकार सत्ता से बेदखल हुई तो उसके आखिरी के तीन वर्षों में वृद्धि दर साधारण से भी नीचे थी। जेटली ने कहा, वृद्धि बढ़ाने की यूपीए सरकार की नीतियों से वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई। इस तरह उस वृद्धि की गुणवत्ता खराब रही।
उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में 1999 से लेकर 2017-18 तक के राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति, बैंक ऋण वितरण और चालू खाते के आंकड़ों का हवाला दिया है। जेटली ने लिखा है कि 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता से बाहर हुई थी तो उस समय वृद्धि दर 8% थी। इसके अलावा 2004 में आई नई सरकार को 1991 से 2004 के बीच हुए निरंतर नए सुधारों का लाभ मिला।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति से भी उसे समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि वाजपेयी सरकार के समय चालू खाते का हिसाब-किताब देश के पक्ष में था। इसके विपरीत यूपीए एक और दो में यह हमेशा घाटे में रहा और यूपीए-दो में यह घाटा सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि बैंक कमजोर होते गए और 2012-13 तक आते-आते उनकी ऋण देने की क्षमता कम हो गई।जेटली ने कहा है कि 2008 में आर्थिक तेजी का दौर खत्म होने के बाद यूपीए सरकार ने राजकोषीय अनुशासन के साथ गंभीर खिलवाड़ किया और सरकारी खर्च को राजस्व से बहुत अधिक ऊंचा कर दिया। 2011-12 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.9% तक पहुंच गया था। उसके बाद अब यह 2017-18 में 3.5% पर लाया गया है।