ये कहानी है चंदेरी की, जहां के हर घर के बाहर लिखा है ‘ओ स्त्री कल आना’। ये स्त्री उस घर के मर्द को अपना निशाना बनाती है जहां ये बात लिखी नहीं होती। कस्बे से मर्द गायब होते रहते हैं और लोग इससे परेशान होकर भी कुछ नहीं कर पा रहे।
इसी कस्बे में पुश्तैनी दर्जी का काम करता है विकी यानि राजकुमार राव जो औरतों की नाप उन्हें बस देखकर ले लेता है मगर उसे इस स्त्री की कहानी पर भरोसा नहीं । विकी के दो दोस्त हैं ‘दाना’ यानि अभिषेक बनर्जी और ‘बिट्टू’ यानि अपारशक्ति खुराना। कस्बे में हर साल 4 दिनों की पूजा होती है क्योंकि इन्हीं चार दिनों में स्त्री अटैक करती है।
इसी पूजा में विकी की मुलाकात हो जाती है एक अनजान लड़की यानि श्रद्धा कपूर से जिसका किसी को नाम तक नहीं पता। ये लड़की उससे अजीब-अजीब काम करवाती है, मिलने के लिए सुनसान जगह पर बुलाती है और फिर गायब हो जाती है। एक दिन विकी का दोस्त दाना भी स्त्री का शिकार हो जाता है और फिर विकी, उसका दोस्त बिट्टू और पुस्तक भंडार चलाने वाले रुद्र यानि पंकज त्रिपाठी दाना की खोज में निकल पड़ते हैं।
ये खोज क्या वाकई स्त्री से इनका सामना करायेगी, क्या है श्रद्धा कपूर के किरदार का राज़ और क्या गायब हुए मर्दों को असल में कोई चुड़ैल लेकर जा रही है बस इन्हीं सारे सवालों के जवाब हैं फिल्म स्त्री में जिसका स्क्रीन्प्ले बहुत दिलचस्प तरीके से लिखा गया है, हालांकि फिल्म का पहला हाफ काफी कमज़ोर है जिसे बढ़िया डॉयलॉग्स और कुछ बेहतरीन सीन्स ने संभाला है लेकिन दूसरे हाफ में फिल्म एक के बाद एक शॉक वैल्यू देती है जो अंत तक जारी रहता है।
स्त्री की सबसे बड़ी खूबी है एक्टर्स की जबरदस्त एक्टिंग। राजकुमार राव की बात करें तो विकी के किरदार में वो सब पर भारी हैं, उनकी कॉमिक टाइमिंग हो या डर का नैचुरल भाव या कन्फ्यूजन से भरे लोकल लव ब्वॉय की अदायगी वो सभी में अव्वल साबित हुए हैं। दूसरे नंबर पर हैं पंकज त्रिपाठी, हालांकि उनके किरदार की लंबाई कम है मगर बावजूद उसके वो उसमें ही आपका दिल जीत लेते हैं। थियेटर में वो जब-जब आयेंगे उनके डॉयलॉग्स पर तालियां बजाने को आप मजबूर हो जायेंगे। दाना के किरदार में अभिषेक बनर्जी इस फिल्म की खोज कहे जा सकते हैं उन्होने बहुत बढ़िया काम किया है। अपारशक्ति खुराना भी खूब जंचे हैं तो श्रद्धा कपूर ने इस फिल्म में अपनी बॉडी लैंग्वेज और बोलने के तरीके को बदला है जो वाकई काबिल ए तारीफ है।
फिल्म के संगीत की बात करें तो फिल्म की कहानी चलते वक्त कोई गाना अलग से सिचुएशन के लिए नहीं डाला गया है, वो कहानी के साथ कुछ दो लाइन बैकग्राउंड में बजता है तो फिल्म की रफ्तार और उसके मूड पर भी असर नहीं पड़ता हालांकि स्त्री के गाने सभी अच्छे हैं। टैकनीक की बात करें तो जिस तरह से चंदेरी को परदे पर पेश किया गया है वो शानदार है। ये उस गांव का माहौल है जो फिल्म को और डरावना बनाने में मदद करता है। सिनेमैटोग्राफी हो या फिल्म की जान उसका बैकग्राउंड स्कोर सभी आला दर्जे के हैं। डायरेक्शन की बात करें तो अमर कौशिक ने फिल्म को पूरी तरह संभाला है हालांकि पहला हाफ वो और थ्रिल से भरा बनाते तो मज़ा आ जाता मगर फिर भी उन्होंने जो ट्रेलर के जरिए वादा किया था उससे कहीं ज्यादा आपको देते नजर आये हैं। स्त्री जरूर देखिए मगर बच्चों की पहुच से दूर रखकर।