Home राष्ट्रीय सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी 4 हफ्ते बढ़ाई….

सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी 4 हफ्ते बढ़ाई….

4
0
SHARE

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में फैसला सुनाया। इसमें पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं की नजरबंदी चार हफ्ते के लिए बढ़ा दी और मामले की एसआईटी से जांच कराने की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि पांचों कार्यकर्ता निचली अदालत से राहत की गुहार लगा सकते हैं। पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव और वेरनन गोंजाल्विस को हिरासत में लिया था। इन पर हिंसा भड़काने की साजिश रचने का आरोप है।

  • चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, “ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं, बल्कि पहली नजर में ऐसे साक्ष्य हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ उनके संबंधों का पता चलता है।”
  • जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा, “आरोपी तय नहीं कर सकते कि मामले की जांच किस एजेंसी से कराई जाए।” उन्होंने केस में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि इससे आरोपियों और अभियोजन पक्ष के बीच पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है।
  • जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ ने चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि पांचों आरोपियों की गिरफ्तारी उनकी आवाज को दबाने की कोशिश है। पुलिस ने जिस तरह से पत्र को सार्वजनिक किया और दस्तावेज दिखाए, उससे महाराष्ट्र पुलिस की गतिविधियां सवालों के घेरे में हैं।                        पुणे पुलिस ने दावा किया था कि इस मामले में एक आरोपी से मिली चिट्ठी में लिखा था, ”नरेंद्र मोदी हिंदूवादी नेता हैं और देश के 15 राज्यों में उनकी सरकारें हैं। अगर वे इसी रफ्तार से आगे बढ़ते रहे तो बाकी पार्टियों के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। ऐसे में मोदी के खात्मे के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। इसलिए कुछ वरिष्ठ कामरेडों ने कहा है कि राजीव गांधी हत्याकांड जैसी घटना को अंजाम देना होगा। ये मिशन नाकाम भी हो सकता है, लेकिन पार्टी में इस प्रस्ताव को रखा जाना चाहिए। मोदी को मारने के लिए रोड शो सबसे सही होगा।” चिट्ठी में एम-4 राइफल और गोलियां खरीदने के लिए आठ करोड़ रुपए की जरूरत होने की बात भी कही गई थी।

1818 में हुए युद्ध में ब्रिटिश सेना ने पेशवा शासकों को हरा दिया। ब्रिटिश सेना में बड़ी तादाद में दलित समुदाय के लोग थे। पुणे के भीमा-कोरेगांव इलाके में 1 जनवरी 2018 को इसकी 200वीं सालगिरह मनाने के लिए बड़ी संख्या में दलित समुदाय के लोग जुटे थे। ये कार्यक्रम जातीय हिंसा में बदल गया। एक युवक की मौत हो गई। आरोप है ये हिंसा सुनियोजित ढंग से कराई गई थी। 200 से ज्यादा जख्मी हुए थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here