भोपाल और उसके आसपास के इलाके में हुई गणना में बाघों की संख्या में बढ़ाेतरी हुई है। इसी साल 5 फरवरी से 26 मार्च तक चली इस गणना में यहां 19 बाघों का मूवमेंट मिला है। इनमें 13 वयस्क और 6 शावक शामिल हैं। लैंडस्कैप के अनुसार वर्ष 2014 में की गई गणना में जहां भोपाल वनमंडल और सीहोर वनमंडल में एक-एक बाघ ने अपनी माैजूदगी दर्ज कराई थी।
इस साल हुई गणना में औबेदुल्लागंज डिवीजन और रातापानी सेंचुरी में 45 वयस्क और 18 शावकों ने मौजूदगी दर्ज कराई है। यहां 2014 की गणना में 16 बाघों की पुष्टि हुई थी। वाइल्ड लाइफ मुख्यालय ने राज्य वन अनुसंधान संस्थान द्वारा तैयार किए गए जियोग्राफिकल मैपिंग में बाघों की मौजूदगी के आंकड़े जारी किए हैं।
इसमें बताया गया है कि वर्ष 2014 में भोपाल और सीहोर वन मंडल की 171 बीटों में कुल 2 बाघों के होने के प्रमाण मिले थे। वही 2018 में हुई गणना में भोपाल व सीहोर वन डिवीजन की 171 बीटों में से 98 बीटों में 19 बाघों का मूवमेंट मिला है। भोपाल फाॅरेस्ट सर्किल की 608 बीटों में बाघों की गणना हुई है। इसमें 158 बीटों में बाघों का मूवमेंट हुआ है। वन विभाग द्वारा जारी किए रुझान में एक और बात सामने आई है। इस दौरान बाघ ऐसे इलाकों में दिखाई दिया है जहां कभी उसका अस्तित्व ही नहीं हुआ करता था। इसमें प्रेमपुरा, समरधा, आमला, भानपुर, वीरपुर जैसे बीट शामिल हैं।
भोपाल फाॅरेस्ट सर्किल के चीफ कंजरवेटर एसपी तिवारी का कहना है कि बाघों की सुरक्षा के लिए कई तरह के प्रयास किए गए हैं, इसी वजह से बाघों के मूवमेंट का इलाका बढ़ा है। रातापानी सेंचुरी में दांतखो गांव को विस्थापित किया गया है। यहां शाकाहारी वन्य प्राणियों के लिए चारागाह भी तैयार किया जा रहा है।
इसके अलावा केरवा से ओंकारेश्वर तक बाघों के लिए काॅरिडोर तैयार किया जा रहा है। बाघों द्वारा किए गए शिकार पर ग्रामीणों को मुआवजा दिया जा रहा है। यह राशि बढ़ा दी गई है। उन्होंने बताया कि मिंडोरा की पहाड़ी खाली थी। यहां पर प्लांटेशन कर बाघ के अनुकूल वातावरण तैयार किया गया है। बाघों के पानी पीने के लिए सॉसर बनाए गए हैं। इन्हीं जगहों पर लगाए गए ट्रैप कैमरे में चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर सहित अन्य वन्यप्राणियों ने उपस्थिति दर्ज कराई है।