हिमालयी राज्यों के समग्र विकास के लिए आम हित के मुददों को केन्द्र सरकार के साथ उठाने के लिए हिमालयी राज्यों को एक मंच पर आना चाहिए। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने यह बात हि.प्र. राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद द्वारा समेकित पर्वतीय पहल तथा शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिमालयी लोगों की भावी पीढ़ी के कल्याण’ पर शुक्रवार को शिमला में आयोजित हिमालयी राज्यों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कही। इस सम्मेलन में नेपाल और देश के 11 हिमालयी राज्यों ने भाग लिया।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिमालयी राज्यों की विकासात्मक जरूरतों के प्रति संवेदनशील हैं और इसी के मध्यनजर केन्द्र सरकार द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए अनेक नई योजनाएं आरम्भ की हैं। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन मुख्य तीन क्षेत्रों कृषि, पर्यटन तथा जल विद्युत में विकास की संयुक्त रणनीति बनाने में सहायक सिद्ध होगा।
जय राम ठाकुर ने कहा कि जल विद्युत क्षेत्र हिमालयी राज्यों के विकास तथा उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अभी भी इन राज्यों को प्राकृतिक तथा अन्य बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वर्षा पैटर्न और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, विशेषकर भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जल विद्युत उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार हिमालयी राज्यों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में मानव तथा पूंजीगत निवेश द्वारा संचालित अपरंपरागत अनुकूलन सम्भावनाओं का पता लगाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हिमालयी ग्लेशियरों का लगातार तेजी से पिघलना चिन्ता का कारण है, जिससे बाढ़ का खतरा उत्पन्न हुआ है, जो न केवल इसके निचले क्षेत्रों में रहने वालों के लिए खतरनाक है, बल्कि पहाड़ी राज्यों में जल विद्युत उत्पादन को भी चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राज्य में बाढ़, भू-स्खलन और खराब मौसम के खतरों से जल विद्युत बुनियादी ढांचे में जोखिम बढ़ रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे देश की कुल जलविद्युत विकास क्षमता का 75 प्रतिशत उत्तर-पूर्वी तथा उत्तरी क्षेत्रों में है, लेकिन उत्तरी क्षेत्र में कुल क्षमता का 34 प्रतिशत तथा उत्तर-पूर्व क्षेत्र में दो प्रतिशत का ही दोहन किया जा सका है। उन्होंने कहा कि कभी हिमाचल प्रदेश को देश के ऊर्जा राज्य के रूप में जाना जाता था, लेकिन कुछ कारणों से धीरे-धीरे उत्पादन में कमी आती गई। उन्होंने कहा कि राज्य में उपलब्ध 27000 मेगावॉट से अधिक की ऊर्जा क्षमता के तीव्र दोहन के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य ने अभी तक10500 मेगावॉट का दोहन किया है और 8000 मेगावॉट की परियोजनाएं प्रक्रियाधीन हैं।
जय राम ठाकुर ने कहा कि सभी हिमालयी राज्यों को जल विद्युत परियोजनाओं को नवीनीकरण ऊर्जा की श्रेणी में रखने के लिए सामूहिक रूप से केन्द्र से आग्रह करना चाहिए, क्योंकि अधिकांश परियोजनाएं नदियों से संचालित की जा रही है जिसका पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की लगभग 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में बसती है और इसमें से 58 प्रतिशत अपनी घरेलू आय व रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि किसान भूमि के छोटे टुकड़ों पर निर्भर करते हैं, कुछ मामलों में एक हैक्टेयर से भी कम भूमि है, जो खाद्य तथा आय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के नाकाफी है और जलवायु परिवर्तन प्रभाव को अपनाने की क्षमता को दरकिनार करती है।
जय राम ठाकुर ने कहा कि प्राकृतिक सौन्दर्य और अनुभव से परिपूर्ण पहाड़ी राज्य हमेशा प्रकृति से प्रेरित पर्यटन पर निर्भर करते हैं। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर पर्यटन की लोकप्रियता और प्रसार हमारे शहरी क्षेत्रों, स्थानीय समुदायों और भारतीय हिमालयी क्षेत्र में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की क्षमता के लिए नुकसानदायी है। उन्होंने कहा कि यह चिन्ता की बात है कि पर्यटन कुछ ही क्षेत्रों में केन्द्रित हो रहा है जो पर्यटकों के लिए पारम्परिक विकल्प रहे हैं। उदाहरण के तौर पर 50 प्रतिशत सैलानी केवल शिमला, कुल्लू तथा कांगड़ा जिलों के शहरी क्षेत्रों में ही जाते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने प्रदेश में जिम्मेवार पर्यटन को अपनाने के लिए सहायता और दृढ़ नीति अपनाई है ताकि विभिन्न पहल और नीतियों जैसे पारिस्थितिकी पर्यटन, ग्रामीण होम-स्टे इत्यादि विशिष्ट पर्यटन विकल्प हो सकें। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार देवभूमि हिमाचल के वैभव को बचाने के लिए सम्भावित तरीकों को सावधानीपूर्वक अपना रही है।
केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य है और इसके लिए अनेक पहल की गई हैं। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों में अपने उत्पादों के मूल्यबर्धन के लिए शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने की अपार सम्भावना है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर तथा उत्तराखण्ड में कुल एक लाख मीट्रिक टन क्षमता के 26 सीए स्टोर स्थापित किए गए हैं। इसी प्रकार, उत्तर-पूर्वी राज्यों में 20 प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की गई हैं। उन्होंने कहा कि सिक्किम राज्य ने जैविक खेती में अग्रणी भूमिका निभाई है और इससे राज्य के किसानों की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आया है।
हि.प्र. विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने कहा कि राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के नेतृत्व में अनेक पहल की हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन शिमला में आयोजित करना मुख्यमंत्री की ही पहल है।
केन्द्रीय राज्य गृह मंत्री किरण रिजिजु ने कहा कि हिमालयी राज्यों की अपनी संस्कृति, सामाजिक तथा धार्मिक पहचान है जिसे हर कीमत पर बनाए रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह सम्मेलन में अपनाए गए प्रस्तावों को पूरा समर्थन प्रदान करेंगे। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों की प्राकृतिक सुन्दरता के कारण पर्यटन की अपार सम्भावना है जिसका पूरी तरह से दोहन किया जाना चाहिए।
पहले सत्र का विषय कृषि था, जिसकी अध्यक्षता केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह तथा सह अध्यक्षता उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने की जबकि हिमाचल, मणिपुर, उत्तराखण्ड, सिक्किम तथा जम्मू-कश्मीर के कृषि मंत्री इस सत्र में पैनलिस्ट थे।
दूसरे सत्र का विषय जल विद्युत था, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने अरूणाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री चौना-मी ने की जबकि त्रिपुरा के सांसद जितेन्द्र चौधरी, प्रधान सचिव ऊर्जा प्रबोध सक्सेना, जम्मू व कश्मीर वन विभाग के सचिव मनोज के द्विवेदी तथा नागालैंड के सेवानिवृत मुख्य सचिव अलमतेमशी जमीर इस सत्र में पैनलिस्ट थे। अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. श्रीकान्त बाल्दी इस सत्र के मध्यस्थ थे।
अन्तिम सत्र का विषय पर्यटन था जिसकी अध्यक्षता केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजजू ने नागालैंड के वन मंत्री सी.एम. चॉंग सहित की। मेघालय के पर्यटन मंत्री मितबाह लिंगदोह, उत्तराखण्ड के सांसद रमेश पोखरियाल, मणिपुर के सांसद डॉ. थोकचोम मीन्या, हिमाचल प्रदेश के सांसद वीरेन्द्र कश्यप, उत्तराखण्ड की सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह तथा त्रिपुरा के अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यटन एवं कृषि डॉ. जी.एस.जी. अयंगार इस सत्र के पैलन में थे।
नीति आयोग के संयुक्त सचिव एवं सलाहकार विक्रम सिंह ने पर्यटन की आर्थिक महता पर प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर हि.प्र. विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद द्वारा ‘वाईल्ड एडीबल फ्रूटस’ तथा ‘हिमाचल प्रदेश की पारम्परिक फसलों’ पर प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री विपिन सिंह परमार ने मुख्यमंत्रियों, केन्द्रीय कृषि मंत्री, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री, उप मुख्यमंत्री, विभिन्न राज्यों के मंत्रियों तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों का इस अवसर पर स्वागत किया।
कृषि मंत्री डॉ. राम लाल मारकण्डा ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखें।
मुख्य सचिव बी.के. अग्रवाल ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
समेकित पर्वतीय पहल के अध्यक्ष सुशील रमोला ने इस अवसर पर प्रस्तुति दी।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री टी.एस. रावत, अरूणाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री चोना मीन, मणिपुर के कृषि मंत्री वी. हांगखालियन, मेघालय के पर्यटन मंत्री मेतबाह लिंगदो, नागालैंड के वन मंत्री सी.एम. चांग, सिक्किम के कृषि मंत्री सोम नाथ, उत्तराखण्ड के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल, हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज, शहरी विकास मंत्री सरवीण चौधरी, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री विरेन्द्र कंवर, मुख्य सचेतक नरेन्द्र बरागटा, पूर्व मुख्यमंत्री तथा उत्तराखण्ड के सांसद रमेश पोखरयाल, विभिन्न राज्यों के सांसद, विधायक, हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी, अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निर्माण मनीषा नन्दा, अतिरिक्त मुख्य सचवि पर्यटन राम सुभग सिंह, प्रधान सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आर.डी. धीमान, प्रधान सचिव व अन्य वरिष्ठ अधिकारी इस अवसर पर उपस्थित थे।