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Birthday Spacial: ऐसे मौके जब हारे नहीं अमिताभ, हर आग में तपे और सोना बनकर निकले….

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लोग कहते हैं असली अमिताभ बच्चन को कोई नहीं जानता। कभी उनके अंदर लावा उबलता रहता था। कभी वे नपे-तुले शब्दों में खामोशी से बात करते हैं। कभी चुपके-चुपके से हंसोड़ हो जाते हैं। अब वे सबसे चमकदार, सर्वाधिक प्रिय और विनम्र बुजुर्ग की तरह तारीफों की बौछारों के बीच शान से सबसे ऊंचे अदाकार की तरह खड़े हैं। वे चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक, च्यवनप्राश, केश तेल, सूट या दीवारों पर लगने वाले पेंट तक की सिफारिश करते नजर आ सकते हैं। बता दें कि एक दौर ऐसा भी रहा जब अमिताभ बच्चन ने अमीर दिखने के लिए दोस्तों से उनके घर में गाड़ियां खड़ी रखने के लिए कहा था।

अमिताभ बच्चन, ये नाम जिंदादिली का दूसरा नाम कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 27 साल की उम्र में बॉलीवुड में कदम रखने वाले महानायक ने अपने करियर और निजी जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। कभी जिंदगी दांव पर लगी तो कभी संपत्ति, लेकिन जितनी बार वे टूटे, उतनी ही बार पूरी ताकत से दोबारा उभरकर सामने आए। आज भी बिग बी देश और दुनिया के करोड़ों लोगों के चहेते हैं।

अमिताभ बच्चन, 26 जुलाई 1982 को बेंगलुरु में कुली के सेट पर घायल हुए थे। तीन दिन गंभीर चोट और दर्द की कशमकश के बीच जब चौथे दिन अमिताभ कोमा में चले गए तब डॉक्टर्स ने उन्हें मुंबई शिफ्ट किया। उस दिन हॉस्पिटल के अंदर और बाहर लोग दुआएं कर रहे थे, जिस कारण अमिताभ को दोबारा जीवन मिला। तब से हर साल अमिताभ 2 अगस्त के दिन अपना दूसरा जन्मदिन मनाते हैं।

2 अगस्त 1982, मुंबई का ब्रीचकैंडी हॉस्पिटल। अमिताभ लगभग मौत के मुंह में जा चुके थे। बेंगलुरु से मुंबई लाते वक्त अमिताभ के पेट में लगे टांके खुल गए और उनकी कंडीशन बेहद खराब हो गई। ब्रीचकैंडी में डॉक्टर्स ने अमिताभ का दोबारा ऑपरेशन किया। यह ऑपरेशन करीब आठ घंटे चला।

ऑपरेशन वाले दिन ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल रेलवे स्टेशन की तरह लग रहा था। हॉस्पिटल के सेकंड फ्लोर पर बने आईसीयू में अमिताभ को लाया गया, लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर होने के बावजूद डॉक्टर्स लगभग नाउम्मीद हो चुके थे कि वे बचेंगे। जया आईसीयू के बाहर खड़ी थीं। डॉक्टर निराश होकर बाहर आने लगे, तभी जया को अमिताभ के पैरों में हरकत दिखाई दी।

जया ने चिल्लाते हुए डॉक्टर्स से कहा- मैंने इनके पैरों को हिलते देखा, आप एक बार फिर से चेक कीजिए। इसके बाद अमिताभ को एक इंजेक्शन दिया गया। तब जाकर अमिताभ की सांसें लौटीं और धीरे-धीरे वे रिकवर करने लगे। 24 सितम्बर को उन्हें डिस्चार्ज किया गया। वापसी के बाद अमिताभ ने फिर से कई सुपरहिट फिल्में दीं।

1996 में ‘अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड’ की शुरुआत की। एबीसीएल का लक्ष्य हजार करोड़ की कंपनी बनना था। लेकिन इस बैनर की पहली फिल्म ही बुरी तरह पिट गई। बाद की फिल्में भी कुछ कमाल नहीं कर पाई। कंपनी ने बेंगलुरु में हुए मिस इंडिया ब्यूटी कॉन्टेस्ट के इवेंट मैनेजमेंट का जिम्मा लिया, जिसमें हाइली पेड लोग रखे गए और करोड़ों रुपए खर्च किए गए। इवेंट से कोई कमाई नहीं हुई, उल्टा बिग बी पर कर्ज का बोझ बढ़ गया। उनकी कंपनी के खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज हुए। बैंक ने लोन वसूली के लिए उन्हें ढेरों नोटिस भेजे। बिग बी को अपना बंगला प्रतीक्षा और जलसा तक गिरवी रखने पड़े।

जनवरी 2013 में दिए एक इंटरव्यू में अमिताभ ने कहा था, “मैं कभी नहीं भूल सकता कि कैसे देनदार मेरे दरवाजे पर आकर गालियां और धमकी देकर अपना पैसा मांगते थे। इससे भी बदतर यह था कि वे हमारे घर प्रतीक्षा की कुर्की के लिए आ गए थे। यह मेरे 44 साल के करियर का सबसे बुरा दौर था। इसने मुझे बैठकर सोचने को मजबूर कर दिया। मैंने अपने ऑप्शंस को देखा और सभी पहलुओं का मूल्यांकन किया। जवाब मिला- मैं जानता हूं कि एक्टिंग कैसे करते हैं। इसके बाद मैं यशजी (यश चोपड़ा) के पास गया, जो घर के पीछे ही रहते थे। मैंने उनसे काम की गुहार लगाई और उन्होंने मुझे ‘मोहब्बतें’ में साइन कर लिया।”

अमिताभ ने कहा था, “मैं केबीसी के कॉन्ट्रिब्यूशन को नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह ऐसे वक्त में मेरे पास आया, जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी। यह बूस्टर शॉट की तरह था। फिर चाहे पर्सनली हो या प्रोफेशनली, दोनों ही तरीके से ही यह मेरे लिए कैटालिस्ट बनकर आया। यकीन मानिए, इसने सभी के पैसे चुकाने में मेरी बहुत मदद की। यह वह ऋण है, जिसे मैं कभी भुला नहीं सकता।”

बच्चन परिवार और गांधी परिवार के बीच दोस्ती हरिवंश राय बच्चन और जवाहर लाल नेहरू के समय से चली आ रही है। नेहरू के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान हरिवंश राय बच्चन विदेश मंत्रालय में बतौर हिंदी अधिकारी काम करते थे। इसके बाद इस दोस्ती को अमिताभ ने आगे बढ़ाया। अमिताभ ने एक बार बताया था कि जब वे चार साल के और राजीव दो साल के थे तब उनकी दोस्ती हुई। अमिताभ के गांधी परिवार से ऐसे रिश्ते थे कि एक जमाने में उन्हें इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कहा जाता था।

इंदिरा की हत्या के बाद राजीव गांधी के कहने पर अमिताभ ने 1984 में इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीता, लेकिन तीन साल बाद ही सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, राजीव की सरकार में बोफोर्स घोटाला हुआ, जिसमें अमिताभ और उनके भाई अजिताभ का नाम भी आया। इस वजह से अमिताभ ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इसके खिलाफ अमिताभ ब्रिटेन की अदालत में गए और मुकदमा जीता, लेकिन इस घोटाले की वजह से दोनों परिवारों के बीच दरार पड़ गई।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद गांधी परिवार को महसूस हुआ कि बच्चन परिवार ने उन्हें मुश्किल दौर में अकेला छोड़ दिया, जबकि बच्चन परिवार का कहना था कि गांधी परिवार ने उन्हें राजनीति में लाकर बीच में छोड़ दिया। कहा ये भी जाता है कि जब अमिताभ की कंपनी एबीसीएल मुश्किल दौर में थी तब भी गांधी परिवार ने उनकी कोई मदद नहीं की। इसी दौरान अमर सिंह ने बच्चन परिवार की मदद की, जिसके बाद बच्चन परिवार की नजदीकियां समाजवादी पार्टी से बढ़ने लगीं और जया बच्चन ने सपा के टिकट से चुनाव लड़ा। एक बार अमिताभ ने ये भी कहा था, ‘गांधी परिवार राजा है और हम रंक।’ हालांकि, दोनों ही परिवारों ने इस पर कभी खुलकर कोई बात नहीं की है।

अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग के जरिए बोफोर्स मामले पर चुप्पी तोड़ी थी। उन्होंने लिखा कि जब उन पर और उनकी फैमिली पर बोफोर्स घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे तो उनकी इमेज पर ही सवाल उठ गए थे। बिग-बी ने लिखा कि बेगुनाह होने के बावजूद उन्हें इस घोटाले के दर्द से उबरने में 25 साल लग गए। अमिताभ ने ब्लॉग में लिखा है, जब बोफोर्स घोटाले में मेरे परिवार और मुझ पर आरोप लगे तो हमारी जिंदगी के हर पहलू को काले स्याह रंगों में पेश किया गया…25 साल बाद प्रॉसिक्यूटर सच को सामने लेकर आए। तकनीकी के इस दौर में आरोप लगाना आसान है। लोग फैक्ट्स चेक करना ही नहीं चाहते। जबकि ऐसी कंट्रोवर्सीज तेजी से फैलती हैं। इसमें तमाम आरोप लगाए जाते हैं। ऐसे तूफान उठते हैं कि दिखाई देना बंद हो जाता है। ऐसे आरोप लगाए जाते हैं कि आपकी शराफत का बेस ही खत्म हो जाता है।

उन्होंने आगे लिखा है, ‘स्वीडन के व्हिसल ब्लोअर ने मुझे 2012 में क्लीनचिट दे दी थी, लेकिन लंबे वक्त तक मुझे झूठ और धोखे के बोझ को सहना पड़ा। जब इस बात का खुलासा हुआ तो उन्होंने मेरा रिएक्शन मांगा। मैं क्या रिएक्शन देता। कोई क्या कहता, क्या 25 साल के मेरे दर्द को कम किया जा सकता है। क्या मेरी मानहानि के बदरंग रंगों को मिटाया जा सकता है।

इस मामले के व्हिसलब्लोअर स्वीडन के एक्स पुलिस चीफ स्टेन लिंडस्ट्रोम ने अमिताभ का नाम लिया था। लिंडस्ट्रोम के मुताबिक वीपी सिंह सरकार के वक्त उन पर बोफोर्स घोटाले में अमिताभ का नाम जोड़ने का प्रेशर बनाया गया था। स्टेन के मुताबिक, उन्होंने ही इस स्कैम से जुड़े 350 से ज्यादा डॉक्यूमेंट्स इंडियन मीडिया को मुहैया कराए थे।

इस सौदे में भारत सरकार ने स्वीडिश कंपनी एबी बोफोर्स से 155 एमएम की 410 होवित्जर बोफोर्स तोपें खरीदी थीं। गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले ओतावियो क्वात्रोची पर इस सौदे में ब्रोकर की भूमिका निभाने का आरोप लगा था।

अभिनय की दुनिया में कहा जाता है कि बाप की छाया बड़ी हो तो बेटे की परछाई तक गुम हो जाती है। अभिषेक के साथ भी यही हुआ। अमिताभ जब इंडस्ट्री में तीन दशक की अभिनय यात्रा कर चुके थे तब साल 2000 में बेटे अभिषेक ने एंट्री ली। पता नहीं क्यूं, पर शुरू से ही अभिषेक में स्टार मटेरियल वाली बात नहीं दिखी।

रिफ्यूजी से डेब्यू करने वाले अभिषेक ने हर संभव कोशिश की, लेकिन वे कपूर खानदार जैसी अभिनय परम्परा बच्चन फैमिली में आगे बढ़ाने में बहुत सफल नहीं रहे। उनके साथ करीना ने भी डेब्यू किया था और दोनों की तुलना करें तो आज करीना की अपनी पहचान है, पर अभिषेक जूझ ही रहे हैं।
अब तक अभिषेक 35 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके हैं, लेकिन चार-पांच फिल्मों को छोड़ दिया जाए, तो अभिषेक के नाम कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी है। जिन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल भी किया है, वे या तो मल्टी-स्टारर रही हैं। ऐसे में अभिषेक अपने फिल्मी करियर में कोई भी बड़ी हिट फिल्म अभी तक नहीं दे सके हैं।

हालांकि, इससे उलट इसी दौरान अमिताभ ने हर मौके को भुनाया और हर मोर्चा फतह किया। तमाम संकटों और कटाक्षों के बीच उन्होंने किसी भी काम से गुरेज नहीं किया। मोहब्बतें से शुरू हुई दूसरी पारी में बागबान, पीकू, पिंक, सरकार, भूतनाथ, 102 नॉट ऑउट जैसी सफल फिल्मों के बाद अब ठग्स ऑफ हिंदोस्तान में एक प्रभावी भूमिका में दिखेंगे। वे चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक, च्यवनप्राश, केश तेल, सूट या दीवारों पर लगने वाले पेंट तक की सिफारिश करते नजर आते हैं।

उन्होंने अभिषेक के करियर को भी स्पोर्ट्स फ्रेंचाइजी की तरफ मोड़ दिया है ताकि वे कुछ नया हासिल कर सकें। कुल मिलाकर अमिताभ ने बेटे की असफलता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और अपनी मेहनत से आलोचकों का मुंह बंद कर दिया।

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