साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में दूसरी बार भी यहां से उमाशंकर गुप्ता ने बीजेपी का झंडा बुलंद किया, इस बार भी उमाशंकर गुप्ता के सामने संजीव सक्सेना ही थे, पर फर्क ये था कि इस बार संजीव सक्सेना हाथी से उतरकर कांग्रेस का झंडा उठा लिये थे. हालांकि, इस बार भी संजीव को 18 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा.
इस सीट पर जातिगत समीकरण की बात की जाये तो यहां सबसे ज्यादा दलित वोटर 55 हजार हैं, कायस्थ 32 हजार, ब्राह्मण 25 हजार, मुस्लिम 30 से 35 हजार, ओबीसी करीब 24 हजार. अब तक यहां दलित और ब्राह्मण वोटर्स बीजेपी के पक्ष में झुकते नजर आए हैं. लेकिन, इस बार एससी-एसटी एक्ट की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी समीक्षा और केंद्र द्वारा उसमें किए गये संशोधन को लेकर सामान्य वर्ग के साथ-साथ दलित वर्ग भी बीजेपी से नाराज दिख रहा है.
ये विधानसभा सीट दो भागों में विभाजित है, पहला सरकारी कर्मचारी और दूसरी स्लम एरिया. दोनों की अपनी-अपनी परेशानियां हैं. सरकारी कर्मचारी इस बार प्रमोशन में आरक्षण और एससी-एसटी कानून में संशोधन को लेकर नाराज हैं, जबकि दूसरा तबका है स्लम एरिया. जहां सबसे ज्यादा दलित रहते हैं. यहां पर आज भी मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. पीने का पानी और बारिश के पानी की निकासी का घोर अभाव है. स्मार्ट सिटी के नाम पर तोड़े गए घरों को लेकर भी लोगों में काफी आक्रोश है.
इस सीट पर दावेदार की बात की जाए तो यहां बीजेपी की तरफ से एक बार फिर मंत्री उमाशंकर गुप्ता सबसे प्रबल दावेदार हैं, जबकि बीजेपी के ही प्रदेश उपाध्यक्ष बृजेश लुनावत भी इसी सीट से टिकट मांग रहे हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार आलोक अग्रवाल भी इसी सीट से अपनी सियासी किस्मत अजमा रहे हैं.
इस सीट पर कांग्रेस के नेता सबसे ज्यादा सक्रिय हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के जितने भी पार्षद हैं, सभी टिकट की दावेदारी ठोक रहे हैं. मोनू सक्सेना, अमित शुक्ला, संतोष कसाना के अलावा पूर्व विधायक पीसी शर्मा इस सीट के अलावा दक्षिण पश्चिम से भी टिकट मांग रहे हैं, जबकि संजीव सक्सेना के भाई प्रवीण सक्सेना भी टिकट की लाइन में हैं, उनकी पत्नी इसी क्षेत्र से पार्षद हैं.