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राफेल विवाद: दो घंटे की सुनवाई के बाद भी नहीं आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला..

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राफेल पर सरकार के सुप्रीम कोर्ट सीलबंद लिफाफे में कीमत और प्रक्रिया की जानकारी देने के बाद आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अहम सुनवाई हुई. सरकार ने कोर्ट के आदेश पर जानकारी का एक सेट कोर्ट को और एक सेट याचिकाकर्ताओं को सौंपा था. याचिकाकर्ताओं ने फ्रांस और भारत सरकार के बीच 36 राफेल के करार पर सवाल उठाए हैं. मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों ने बेंच ने करीब दो घंटे से ज्यादा तक मामले को सुना. दो बजे फिर इस मामले पर सुनवाई होगी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने राफेल सौदे को रद्द करने की मांग की. वहीं एक और याचिकाकर्ता और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सरकार पर जानकारी छुपाने का आरोप लगाया. प्रशांत भूषण ने कीमत का मुद्दा भी उठाया, कहा कि हमें अभी तक कीमत नहीं बताई गई, गोपनीयता का हवाला दिया जा रहा है. जह दो ससंद में कीमत बताई तब देश की सुरक्षा को खतरा नहीं था

सरकार की ओर से एटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में दलील दी कि ये मामला विशेषज्ञों का है, इसलिए कोर्ट तकनीक तय नहीं कर सकता. मीडिया रिपोर्ट के आधार पर याचिकाएं दायर की गईं हैं. एटॉर्नी जनरल ने की दलील पर सीजेआई ने कहा कि कीमत पर चर्चा तभी होगी जब हम इसकी इजाजत देंगे. दरअसल AG का कहना था कि वो कीमत पर कोर्ट में ज़्यादा चर्चा नहीं चाहते. इससे बेहद गोपनीय बातें दूसरे देशों को पता चल सकती हैं.सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने सरकार पर जानकारी छुपाने का आरोप लगाया. याचिकाकर्ता एम एल शर्मा ने राफेल सौदा रद्द करने की मांग की. याचिका कर्ता ने कहा कि हमें दस्तावेज नहीं मिले हैं. बस कुछ पन्ने मिले हैं, मई में नेगोसिएशन शुरू हुए. अप्रैल में पीएम ने डील का ऐलान कर दिया था, फिर इसका क्या मतलब? इसके साथ ही याचिका कर्ता ने मांग की राफेल केस को पांच जजों की बेंच को सौंपा जाए. यही बेंच तय करे कि क्या ऐसी डील हो सकती है. बता दें कि अभी इस मामले की सुनवाई सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है.

इसी मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ”सोमवार को हमें जवाब मिला, सरकार कह रही है कि उसने प्रक्रिया को छोटा किया. इसलिए सरकारों के बीच समझौता किया गया लेकिन फ्रेंच सरकार कोई संप्रभु गारंटी नहीं दे रही है. आगर दसॉल्ट ने शर्तों का पालन नहीं किया तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? पहले लॉ मिनिस्ट्री ने ये बात कही. बाद में अपने स्टैंड को बदल लिया.प्रशांत भूषण ने कहा, ”पिछले सौदे में 108 विमान देश मे बनाने की बात थी. दसॉल्ट का राफेल और यूरोफाइटर का टायफून शॉर्टलिस्ट हुआ. 2012 में राफेल को सस्ता और बेहतर पाया गया. 70 फीसदी काम HALमें होना था. 25 मार्च 2015 में भी दसॉल्ट के चेयरमैन ने कहा कि कीमत के नेगोसिएशन का 95 फीसदी काम पूरा हुआ, जल्द ही HAL के साथ काम शुरू करेंगे. 8 अप्रैल को फ्रांस जाते वक्त भी पीएम ने कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया. इसके बाद 10 अप्रैल को अचानक नई डील का ऐलान कर दिया. ऑफसेट पार्टनर की शर्त भी बदल दी गयी.’

प्रशांत भूषण ने कहा, ”17 अप्रैल को फ्रांस की मीडिया ने रिपोर्ट किया कि भारत के पीएम रिलायंस को शामिल करना चाहते थे, इसलिए डील बदली गयी. इसकी जानकारी किसी को नहीं थी, रक्षा मंत्री, वायुसेना प्रमुख किसी को नहीं. जो डील 25 मार्च तक चालू थी, उसे अचानक से खत्म बता दिया गया.” प्रशांत भूषण ने कहा, ”पिछली में डील कहा गया था कि अप्रैल 2019 तक कई विमान मिल जाएंगे. 2016 में बदली गयी डील से देरी ही होगी, अब सरकार ने 110 नए विमानों का टेंडर जारी किया है, मतलब 36 कम हैं. पीएम को सौदा बदलने का कोई हक नहीं था, प्रक्रिया का गंभीर उल्लंघन हुआ.

ऑफसेट पार्टनर के मामले में प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार कह रही है कि उसे ऑफसेट पार्टनर का ठीक से पता नहीं है. अभी दसॉल्ट से पूरी जानकारी नहीं मिली. क्या ये दलील मानने लायक है? ऑफसेट पार्टनर की शर्तों को पिछली तारीख से बदला दिखाया गया.” प्रशांत भूषण की इस दलील पर सीजेआई ने कहा कि आप ऑफसेट की शर्तों के पैर 8.2 में बदलाव की जो बात कह रहे हैं,वो दो जगह अलग लिखी है. इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि एक मूल है, एक बदला हुआ है. सीजेआई ने फिर कहा कि दोनों को पढ़िए. इसके बाद प्रशांत भूषण ने पढ़ने के दौरान गलती मानी कि 2 जगह अलग बात लिख दी गयी है.

प्रशांत भूषण की राफेल की कीमत को लेकर कहा कि सरकार ने राफेल की कीमत की जानकारी नहीं बताई गई है. गोपनीयता का हवाला दिया दिया गया. भूषण ने कहा कि कीमत बताने से देश की सुरक्षा को कैसे खतरा हो सकता है? दो बार संसद में कीमत बताई गई तब क्या गोपनीयता समझौते का उल्लंघन किया? उन्होंने कहा, ”विश्वसनीय सूत्र के मुताबिक पहले पूरी तरह लैस विमान की कीमत 155 मिलियन यूरो थी. अब 217 मिलियन यूरो है. ऐसा क्यों हुआ?” भूषण ने कहा कि दसॉल्ट ने रिलायंस को जिस वक्त चुनाव उस वक्त उनके पास जमीन तक नहीं थी. भूषण ने यह भी कहा कि कोर्ट सीबीआई को केस दर्ज करने का आदेश दे.

पूर्व केद्रीय मंत्री और राफेल मामले में याचिकाकर्ता अरुण शौरी ने भी कोर्ट में अपनी दलीलें रखीं. अरुण शौरी ने कहा, ”दसॉल्ट जैसी कंपनी एक नई बिना अनुभव वाली कंपनी को बिल्कुल नहीं चुनेगी. मैंने इस विषय पर कुछ काम किया है. 1929 में बनी दसॉल्ट जैसी कंपनी किसी नौसिखिया को पार्टनर नहीं बना सकती. ये कंपनी दिवालिया होने की कगार पर थी. लोगों का पैसा लगा है लेकिन लोगों से कीमत छुपाई जा रही है.’ अरुण शौरी ने कहा कि मिराज 2000 को परमाणु मिसाइल संपन्न बनाने का सौदा दसॉल्ट से हुआ. इसमें HAL की भी भूमिका है, हमने इसका विरोध नहीं किया.

प्रशांत भूषण की तरह अरुण शौरी ने भी गारंटी की बात कही. शौरी ने कहा, ”फ्रेंच सरकार कोई संप्रभु गारंटी नहीं दे रही है. अगर दसॉल्ट ने पालन नहीं किया तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? पहले लॉ मिनिस्ट्री ने ये बात कही. बाद में अपने स्टैंड को बदल लिया. हेलमेट से लेकर मिसाइल तक सब पहले जैसा है. 40 साल मेंटनेंस की दलील भी कमजोर है”अरुण शौरी की दली के बाद एटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से कहा कि आपने कहा कि सीमित सुनवाई होगी. सीजेआई ने एटॉर्नी जनरल से कहा कि क्योंकि मामला एयरफोर्स से जुड़ा है इसलिए हम एयरफोर्स के अधिकारियों को सुनना चाहते थे, यहां रक्षा मंत्रालय से दो अधिकारी आए हैं. इस पर एटॉर्नी जनरल ने कहा कि वायुसेना के अधिकारी जल्द ही कोर्ट में आएंगे. एटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि कुछ जानकारी सिर्फ फ्रांस सरकार की इजाजत से ही सार्वजनिक की जा सकती है.

एटॉर्नी जनरल ने कहा, ”राष्ट्रहित का मामला है, ये मामला विशेषज्ञों का है. न्यायपालिका तकनीक पर तय नहीं कर सकती. याचिकाएं मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दाखिल कर दी गयी हैं. कोर्ट खुद विचार करे कि क्या वो ऐसे विषय को देखने में सक्षम है? एटॉर्नी जनरल की दलील पर सीजेआई ने कहा कि कीमत पर चर्चा तभी होगी जब हम इसकी इजाजत देंगे. दरअसल AG का कहना था कि वो कीमत पर कोर्ट में ज़्यादा चर्चा नहीं चाहते. इससे बेहद गोपनीय बातें दूसरे देशों को पता चल सकती हैं.इस बीच राफेल विमान सौदे पर फ्रांस की दसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैपियर के बयान ने बीजेपी को कांग्रेस पर पलटवार का मौका दे दिया. वहीं राहुल गांधी का हमला अभी भी जारी है. मंगलवार को छत्तीसगढ़ के करसिया में रैली को संबोधित करते हुए हमलावर अंदाज में राहुल ने एक बार फिर पीएम मोदी पर निशाना साधा. कांग्रेस ने एरिक ट्रैपियर के इंटरव्यू को प्रायोजित और सच छुपाने वाला बताया है.

राफेल सौदे पर लगातार आऱोप प्रत्यारोप के बीच कल फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर सामने आए. उन्होंने निजी कंपनी रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर बनाने के आरोपों का जवाब दिया. ट्रैपियर ने कहा, ”ये फ्रांस और भारत सरकार का फैसला नहीं है कि डसॉल्ट ने रिलायंस को चुना. मैंने रिलायंस के साथ 2011 में बात शुरू की थी, उस वक्त न फ्रांस में ओलांद थे न भारत में मौजूदा पीएम थे.”कांग्रेस ने एरिक ट्रैपियर के इंटरव्यू को ‘कहलवाया हुआ’ इंटरव्यू बताया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कहलवाए गए इंटरव्यू और गढ़े हुए झूठ राफेल घोटाले की सच्चाई को दबा नहीं सकते. कानून का पहला नियम है कि बराबरी के लाभार्थी और सह आरोपी के स्टेटमेंट का कोई महत्व नहीं. दूसरा नियम है कि बराबरी के लाभार्थी और आरोपी अपने खुद के केस में जज नहीं हो सकते. सच बाहर आने का रास्ता होता है.”

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यूपीए के समय राफेल की डील जिस कीमत में हुई उससे ज्यादा कीमत में मोदी सरकार ने राफेल का सौदा किया. राहुल गांधी सीधे प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेकर आरोप लगा रहे हैं कि अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार किया. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के लिए ‘चोर’ जैसे शब्द का भी इस्तेमाल किया. राहुल गांधी का कहना है कि प्रधानमंत्री ने राफेल सौदे में अनिल अंबानी को 30,000 करोड़ का फायदा पहुंचाया. कांग्रेस सवाल उठा रही है कि प्रधानमंत्री के एलान से पहले रक्षा खरीद परिषद से मंजूरी क्यों नहीं ली गई. बड़े रक्षा खरीद सौदों को मंजूरी देने वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति से इजाजत क्यों नहीं ली गई. राफेल सौदे के लिए मोदी सरकार ने रक्षा खरीद प्रक्रिया की अनदेखी की है. टेक्नॉलिजी ट्रांसफर की जरूरत को आखिर दरकिनार क्यों किया गया?

36 राफेल विमान खरीदने के लिए 27 हजार 216 करोड़ का खर्च हुआ, इसमें 14 हजार 400 करोड़ के पुर्जे हैं. बदलाव का खर्च 13 हजार 600 करोड़ रुपये, मेटेमेंस का खर्च 2 हजार 824 करोड़ रुपये है. इस हिसाब से 36 राफेल पर कुल खर्च 58 हजार 40 करोड़ रुपये का है. एक राफेल की बात करें तो इस पर 1612 करोड़ रुपये का खर्च आया है.राफेल हवा से हवा में मार करने वाली दुनिया की सबसे घातक मिसाइल मेटेओर से लैस है. मेटेओर मिसाइल 100 किलोमीटर दूर उड़ रहे फाइटर जेट को मार गिराने में सक्षम है और ये चीन-पाकिस्तान सहित पूरे एशिया में किसी के पास नहीं है. इसके अलावा राफेल में हवा से सतह पर मार करने वाली सबसे खतरनाक क्रूज़ मिसाइल स्कैल्प है. जो करीब 560 किलोमीटर दूर तक मार कर सकती है. राफेल हवा से हवा में मार करने वाली खतरनाक माइका मिसाइल से भी लैस है जो 50 किलोमीटर तक के टारगेट को मार सकती है.

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