रुद्राक्ष का अर्थ है रूद्र का अक्ष. माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है. इसको प्राचीन काल से आभूषण के रूप में, मंत्र जाप के लिए तथा ग्रहों को नियंत्रित करने के लिए इसका प्रयोग होता है. रुद्राक्ष के प्रयोग से हम शनि की पीड़ा को भी दूर कर सकते हैं और शनि की कृपा पा सकते हैं. परन्तु इसके लिए रुद्राक्ष धारण करने के नियमों का पालन करना होगा.
रुद्राक्ष धारण करने के नियम क्या हैं?
रुद्राक्ष कलाई, कंठ और ह्रदय पर धारण किया जा सकता है. इसे कंठ प्रदेश तक धारण करना सर्वोत्तम होगा.
इसे कलाई में बारह, कंठ में छत्तीस और ह्रदय पर एक सौ आठ दानो को धारण करना चाहिए.
एक दाना भी धारण कर सकते हैं. लेकिन यह दाना ह्रदय तक होना चाहिए तथा लाल धागे में होना चाहिए.
सावन में सोमवार को और शिवरात्री के दिन रुद्राक्ष धारण करना सर्वोत्तम होता है.
रुद्राक्ष धारण करने के पूर्व उसे शिव जी को समर्पित करना चाहिए तथा उसी माला या रुद्राक्ष पर मंत्र जाप करना चाहिए .
जो लोग भी रुद्राक्ष धारण करते हैं, उन्हें सात्विक रहना चाहिए तथा आचरण को शुद्ध रखना चाहिए अन्यथा रुद्राक्ष लाभकारी नहीं होगा.
रोजगार में समस्या के लिए-
इसके लिए दस मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए.
इसे शनिवार को लाल धागे में गले में धारण करें.
एक साथ तीन, दस मुखी रुद्राक्ष धारण करना विशेष लाभकारी होगा.
स्वास्थ्य या आयु की समस्या के लिए-
इसके लिए शनिवार को गले में आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करें.
या तो केवल एक ही आठ मुखी रुद्राक्ष पहनें.
या एक साथ चौवन रुद्राक्ष पहनें.
कुंडली में शनि के किसी अशुभ योग को दूर करने के लिए-
एक मुखी और ग्यारह मुखी रुद्राक्ष एक साथ धारण करें.
इसमें एक-एक मुखी और दो, ग्यारह मुखी रुद्राक्ष रखें.
इसको एक साथ लाल धागे में धारण करें