बीजेपी तो पहले से ही इस मुद्दे पर मौन थी, लेकिन अब कांग्रेस ने भी खामोशी ओढ़ ली है. यहां तक कि सीएम शिवराज की पत्नी के भाई संजय सिंह, जिन पर कांग्रेस कभी व्यापम का आरोप लगाती थी उनके सहित कई ऐसे चेहरे अब कांग्रेस की टिकट पर सियासी रण में उतर चुके हैं. इसके बावजूद कांग्रेस दावा करती है कि वे इस मुद्दे को भूले नहीं हैं और उनके वचन पत्र में व्यापम की जगह नई संस्था बनाने की बात भी है.कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में कुछ भी दावा किया हो, लेकिन इस मुद्दे के चलते उस पर सवाल उठने की कई वजह हैं.
इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि सीएम के साले संजय सिंह अब कांग्रेस की टिकट से चुनावी मैदान में हैं. फूदें लाल मार्को जिन पर रिश्वत देकर अपने बेटे का एडमिशन कराने का आरोप था, वे भी पुष्पराजगढ़ सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं. व्यापम के आरोपी संजीव सक्सेना को अक्सर कमलनाथ के साथ देखा जाता है और वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य भी हैं. व्यापम आरोपी गुलाब सिंह किरार भी कांग्रेस में शामिल होने वाले थे, लेकिन कार्यकर्ताओं के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो सका.
जहां एक ओर व्यापम आरोपियों पर कांग्रेस ने रहमत दिखाई तो वहीं दूसरी ओर व्यापम के व्हिसिल ब्लोअर डॉ. आनंद राय और पारस सकलेचा को टिकट मांगने पर भी दरकिनार कर दिया गया. वहीं इस मुद्दे पर कांग्रेस की चुप्पी के पीछे राजनीतिक जानकार एक वजह ये भी बताते हैं कि इस मुद्दे को लेकर कोई पब्लिक मूवमेंट नहीं हुआ, ये मुद्दा केवल शहरी क्षेत्रों में प्रभावी है इसलिए कांग्रेस इस पर ज्यादा बात नहीं कर रही.
बहरहाल जो भी हो जिस मुद्दे से जुड़े 45 से ज्यादा लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई हो, जिनमें उस वक्त के प्रदेश के राज्यपाल का बेटा भी शामिल हो, जिस मुद्दे में 170 से ज्यादा केस रजिस्टर हुए हों, 38 सौ लोगों को आरोपी बनाया गया हो, 46 सौ लोगों से पूछताछ हुई हो और 50 केसों में न्यायालय की निगरानी में जांच हो रही हो, ऐसे मुद्दे पर चुनावी बेला में सभी सियासी दल चुप्पी साध लें तब ये सवाल उठना तो लाजमी है कि व्यापम के मुद्दे पर चुप्पी साधीं दोनों पार्टियों बीजेपी-कांग्रेस में इस मुद्दे पर मौन सहमति तो नहीं.