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अगली सुनवाई 5 दिसंबर को CBI चीफ आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं…

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सीबीआई बनाम सीबीआई मामले (CBI vs CBI) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुरुवार को सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी. सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा वापस ड्यूटी पर लौटेंगे या आगे उन्हें जांच का सामना करना होगा. आलोक वर्मा ने उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फ़ैसले को चुनौती दी है. चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ़ की पीठ आलोक वर्मा के सीलबंद लिफ़ाफ़े में दिए जवाब पर विचार कर सकती है.

सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल राहत नहीं मिली. अब मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी.सीजेआई ने कहा कि हमने आपको सुना है लेकिन आपका क्या लोकस है तो इस पर धवन ने कहा कि अगर निदेशक को हटाया नहीं जाता तो ट्रांसफर नहीं होता. इसके बाद सीजेआई ने कहा कि आप डिजर्व नहीं करते फिर भी हमने आपको सुना है. इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से कहा कि DIG मनीष सिन्हा को भी ट्रांसफर किया गया. कुल दस अफसरों का ट्रांसफर किया गया. उन्होंने आगे कहा कि डीआईजी अस्थाना के खिलाफ जांच की निगरानी कर रहे थे. हमने भी जांच के लिए SIT की मांग की है.

DIG एम के सिन्हा की ओर से इंदिरा जयसिंह ने कहा कि हम अभी अपनी याचिका की सुनवाई नहीं चाहते. हम ट्रांसफर केस से पहले आलोक वर्मा की याचिका पर फैसले का इंतजार करना चाहते हैं.एके बस्सी की ओर से बहस कर रहे राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि दो साल के फिक्स कार्यकाल से सीबीआई निदेशक को महरूम नहीं रखा जा सकता. इस पर CJI ने कहा कि आप कौन हैं? इसके जवाब में धनव ने कहा कि मैं आईओ हूं, जिसे पोर्ट ब्लेयर ट्रांसफर किया गया. धवन ने कहा कि अगर कानून में कोई खामी है तो सुप्रीम कोर्ट उसे सही करेगा. सरकार या सीवीसी नहीं कर सकते. CJI ने एके बस्सी के वकील धवन से कहा कि क्या आप अपने ट्रांसफर को चुनौती दे रहे हैं, तो इसके जवाब में धवन ने कहा कि हम तो एसआईटी जांच की भी मांग कर रहे हैं.

कपिल ने कहा कि ये आदेश सीवीसी एक्ट की धारा 8 के तहत दिया गया. सीवीसी सिर्फ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के मामलों में सीबीआई को सुपरवाइज करती है. सीवीसी को सीबीआई निदेशक को हटाने या उसके आफिस को सील करने या काम करने ना देने का अधिकार नहीं है. ये कदम सीवीसी के अधिकारक्षेत्र से बाहर है. सीबीआई में अंतरिम निदेशक की नियुक्ति नहीं कर सकता. कपिल ने कहा कि सीवीसी सीबीआई निदेशक के दो साल के कार्यकाल के नियम पर ओवरराइड नहीं कर सकता, सरकार भी नहीं कर सकती. कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘कहा गया कि अगर रंगे हाथ पकडा गया तो? ये कल सीवीसी के साथ भी हो सकता है. ऐसे में मामला नियुक्ति करने वाली कमेटी के पास जाना चाहिए.

-कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो सीवीसी या चुनाव आयोग में भी हो सकता है. यहां आरोप- प्रत्यारोप हैं. सीजेआई ने कहा कि हम इसमें नहीं जा रहे. सीवीसी के खिलाफ आरोप कहां हैं. तो इस पर सिब्बल ने कहा कि सीवीसी और सरकार एक्ट की अनदेखी और मनमानी कर सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर नहीं भेज सकते. नियुक्ति और हटाने या निलंबन के आदेश सिर्फ सेलेक्शन कमेटी कर सकती है. ये मामला कमेटी के पास भेजना था. CBI केस में मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से पेश होते हुए कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ‘CVC की शक्तियों का दायरा सीमित है. वे CBI डायरेक्टर को हटाने या अपने कार्यालय को सील करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं कपिल ने कहा था कि सीवीसी पर भी आरोप हैं तो सीजेआई ने कहा कि कानूनी मुद्दे पर ही बहस कीजिए. सीजेआई ने कहा कि सीवीसी के खिलाफ आरोप कहां हैं?

इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- इस मामले जो भी फैसला लिया गया वो बिना अधिकार लिया गया और बिना तय प्रक्रिया लिया गया. अगर किसी को अस्थाई तौर पर नियुक्ति करनी ही थी तो वो भी कमेटी को भेजा जाना चाहिए था. सीजेआई ने कहा कि क्या आप ये कहना चाहते हैं बिना कमेटी के किसी भा हालत में सीबीआई निदेशक को छू नहीं सकते ? तो इस पर सिब्बल ने कहा- हां. कमेटी के आदेश के बिना किसी अन्य आदेश से निदेशक को छुआ तक नहीं जा सकता.

नरीमन फली ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: जब आप कमेटी की मंजूरी के बिना ट्रांसफर नहीं कर सकते तो निदेशक के पर कैसे काट सकते हैं सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ किया कि सबसे पहले वो इस बाबत सुनवाई करेंगे कि सीबीआई डायरेक्ट को लीव पर भेजने से पहले कमिटी की इजाजत जरूरी है या नहीं? कोर्ट ने ये भी साफ किया कि अगर कोई पक्ष इस बात पर बहस करना चाहता है तो कर सकता है.

दवे – आलोक वर्मा को हटाने के लिए DSPE एक्ट को बायपास किया गया. ये आदेश अवैध है सीवीसी का अनुशासानात्मक कार्रवाई में कोई लेना देना नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जांच के दौरान निलंबन का प्रावधान है क्या कॉमन कॉज की तरफ से दुष्यंत दवे से कोर्ट ने पूछा आपके पास नरीमन से अलग दलीलें हैं तो बताएं.जोसेफ ने कहा- हम सिर्फ फिलहाल फली की कमेटी की दलीलों को सुनना चाहते हैं. जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि अगर सीबीआई निदेशक घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़े जाते तो क्या होता? इस पर नरीमन ने कहा कि तो फिर उनको कोर्ट में या फिर कमेटी के सामने जाना होता.

आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश का कोई आधार नहीं है. अगर कोई गलत हुआ जिसकी जांच की जरूरत है तो कमेटी के पास जाना चाहिए था. सरकार को इस मामले में कम से कम कमेटी के पास जाना चाहिए था. अगर किसी कारण से उनका तबादला करना था तो कमेटी की मंजूरी जरूरी है. इसके बिना सरकार का आदेश कानून में खड़ा नहीं होता. सरकार को कमेटी को बताना था.

सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की सिफारिश प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और नेता प्रतिपक्ष करते हैं. दो साल का कार्यकाल नियम के मुताबिक है. कानून खुद कहता है कि सीबीआई निदेशक इस तरह ट्रांसफर नहीं होगा. आलोक वर्मा को कमेटी ने चुना था. उसकी मंजूरी जरूरी है. कानून में कहीं नहीं है कि इस तरह Exile में भेजा जाए

ने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया बताई: कमेटी तय करती है. इसमे प्रधानमंत्री, cji और विपक्ष के नेता भी होते हैं. विपक्ष के नेता ना हों तो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को सदस्य बनाया जाय. ना ही कानून में निदेशक की शक्तियों को हल्का करने का प्रावधान हैं. अगर इस दौरान आसाधारण हालात में सीबीआई निदेशक का ट्रांसफर किया जाना है तो कमेटी की अनुमति लेनी होगी.

CBI निदेशक को कमेटी ही नियुक्त कर सकती है, कमेटी की सिफारिश पर ही नियुक्त किया जाता है. नरीमन फली ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सुनवाई पर आने से पहले दाखिल याचिका छापी जा सकती है. उस पर प्रतिबंध नहीं है. तो इस पर CJI ने कहा कि हम इस पर कोई आदेश जारी नहीं कर रहे हैं सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा मामले की सुनवाई शुरू हो गई है चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच कर रही है सुनवाई फली नरीमन आलोक वर्मा के लिए कोर्ट में पेश हुए फली नरीमन ने कहा- एक मामला  कोर्ट में दाखिल हुआ हो और सुनवाई के लिए नहीं आया हो तो क्या छपने पर कार्रवाई हो सकती है

पिछली सुनवाई में सीवीसी की रिपोर्ट पर सीबीआई चीफ आलोक वर्मा के जवाब के कुछ अंश लीक होने पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 29 नवंबर तक के लिए टाल दी थी. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन से कहा कि हम ये रिपोर्ट आपको वर्मा के वकील के तौर पर नहीं वरिष्ठ वकील के तौर पर दी थी ये पेपर बाहर कैसे आ गए. इस पर वकील ने जानकारी न होने की बात कही और कहा कि रिपोर्ट लीक करने वालों को कोर्ट में हाजिर कराया जाना चाहिए. इस जवाब से गुस्साए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आप में से कोई सुनवाई के लायक नहीं है.

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि संस्थानों का सम्मान और उनकी मर्यादा बनी रहनी चाहिए. इस पर नरीमन ने कहा कि मैं पिछली सदी से कोर्ट में हूं. 67 साल हो गए हैं मुझे कोर्ट में. लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई. इतना अपसेट कभी नहीं हुआ. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि मै आपको कोई कागज़ दूं और मेरा स्टाफ बीच में ही उड़ा ले? कोर्ट ने यह भी कहा कि कल जो जवाब आया वो लिफाफा भी नरीमन को लौटा दिया.

कोर्ट ने कहा कि कोर्ट कोई प्लेटफार्म नहीं है जहां कोई भी आकर कुछ भी कह जाय. कोर्ट की कार्यक्षमता और सम्मान भी दांव पर है. इसलिए अब 29 को ही अगली सुनवाई होगी. कोर्ट ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलोँ में सर्वोच्च गोपनीयता बरती जानी चाहिए. कोर्ट ने सख्त अंदाज़ और लहजे में नरीमन को एमके सिन्हा की अर्ज़ी और मीडिया रिपोर्ट की प्रति लौटा दी सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कोर्ट स्टाफ को भी फटकार लगाई कि इस संबंध में मीडिया रिपोर्ट को कोर्ट के सामने क्यों नहीं रखा गया. चीफ जस्टिस ने कहा गुस्से में स्टाफ को भी फटकार लगाई. चीफ जस्टिस ने गुस्से में कहा कि कोर्ट नंबर एक की क्षमता उच्च स्तर की है.

बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर केन्द्रीय सतर्कता आयोग की प्रारंभिक रिपोर्ट पर सोमवार को सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब दाखिल किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले, सोमवार को आलोक वर्मा से कहा था कि वह सीवीसी की रिपोर्ट पर आज ही सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब दाखिल करें. साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इस मामले की सुनवाई के निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव नहीं किया जायेगा. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वर्मा के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने जवाब दाखिल करने के लिये सोमवार की सुबह जब थोड़ा वक्त देने का अनुरोध किया तो न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई का कार्यक्रम स्थगित करने से इनकार कर दिया.

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