म्यूजियम संस्थान की सदस्य ने बताया कि यह म्यूजियम हादसे के पीड़ितों ने ही बनाया है. यह उनका एक प्रयास है, जिसके जरिए वह अपनी बात लोगों के सामने रख रहे हैं, कि वह हादसे को कैसे देखते हैं, इसके लिए वह किसे जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि सरकार कभी भी यह नहीं दिखाएगी कि किस तरह से लाशों को ट्रकों में भरकर नर्मदा में फेंका गया था, किस तरह एन्डर्सन को भगाया गया था. यही सब दिखाने की कोशिश यह म्यूजियम करता है.
म्यूजियम की शुरुआत 2015 में इस मकसद से हुई थी कि गैस पीड़ित अपना दर्द बयां कर सकें. वहां प्रदर्शनी में रखा हर सामान हर तस्वीर पीड़ितों ने खुद दी है. चाहे किसी बच्चे का स्वेटर हो या किसी की पत्नी की साड़ी. म्यूजियम में रखी तस्वीरों और यादों को देखकर दिल आज भी दहल उठता है और उस हादसे की भयावहता का अंदाजा हो जाता है.