सीबीआई बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से गुरुवार को सुनवाई जारी है. पिछली सुनवाई में दोनों पक्षों के वकीलों ने दलील दी थी, मगर सुप्रीम कोर्ट से ने सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को लेकर कोई फैसला नहीं दिया था. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा वापस ड्यूटी पर लौटेंगे या आगे उन्हें जांच का सामना करना होगा. आलोक वर्मा ने उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फ़ैसले को चुनौती दी है. केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा, जिन्हें केन्द्र ने उनके अधिकारों से वंचित करके अवकाश पर भेज दिया है, ने पिछली सुनवाई यानी 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनकी नियुक्ति दो साल के निश्चित कार्यकाल के लिये हुयी थी और इस दौरान उनका तबादला तक नहीं किया जा सकता. केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़े विवाद के बाद केन्द्र ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर दोनों अधिकारियों को अवकाश पर भेज दिया था. वर्मा ने उनके अधिकार लेने और अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है.
केंद्र सरकार को सीबीआई में हो रही गतिविधियों की चिंता हुई. क्योंकि दो बड़े अफसर लड़ रहे थे. अफसरों की आपसी लड़ाई में भ्रष्टाचार के आरोपों को हथियार बनाया गया. दो शीर्षस्थ अफसर लड़ रहे थे और सारा विवाद तूल पकड़ गया. सीवीसी को जांच कर तय करना था कि कौन सही है कौन गलत. लेकिन वो पब्लिक में चले गए.
AG ने मीडिया की खबरें दिखाईं. सीबीआई के अफसरों के बीच चल रहे विवाद और झगड़े की ये सब जानकारी अखबारों और मीडिया की है. सब कुछ पब्लिक डोमेन में है. जुलाई से ही दोनों के बीच खबरें आनी शुरु हुईं. एजी ने टेलीग्राफ व आउटलुक की खबरें दिखाए.
AG बोले- आलोक वर्मा अभी भी निदेशक हैं. सरकारी बंगला कार सबकुछ वही है. अस्थाना भी स्पेशल डायरेक्टर हैं.AG ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने हमारे पास मीडिया रिपोर्ट्स का पुलिंदा भेजा है. हमने वर्मा को सिर्फ छुट्टी पर भेजा है. गाड़ी, बंगला, भत्ते, वेतन और यहां तक कि पदनाम भी पहले की तरह है. आज की तारीख में वही सीबीआई निदेशक हैं.
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल सुप्रीम कोर्ट में बहस कर रहे हैं. उन्होंने कोर्ट को बताया, ‘सरकार ने सीवीसी की सलाह पर फैसला लिया था. दोनों अफसरों के बीच विवाद से सीबीआई का भरोसा लोगों में हिल गया था. ये फैसला बड़े जनहित और संस्थान का गरिमा बचाने के लिए लिया गया था. सरकार ने संस्थानिक अखंडता को बचाने के लिए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला किया. आसाधारण हालात तो देखते हुए सीवीसी जांच पूरी होने तक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया.
अस्थाना द्वारा आलोक पर लगाए गए आरोपों को कैबिनेट सेक्रेट्री द्वारा सीवीसी को भेजा गया. केंद्र सरकार को सीबीआई में हो रही गतिविधियों की चिंता हुई, क्योंकि दो बड़े अफसर लड़ रहे थे. अफसरों की आपसी लड़ाई में भ्रष्टाचार के आरोपों को हथियार बनाया गया. दो शीर्षस्थ अफसर लड़ रहे थे और सारा विवाद तूल पकड़ गया.
दरअसल, केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा, जिन्हें केन्द्र ने उनके अधिकारों से वंचित करके अवकाश पर भेज दिया है, ने पिछली सुनवाई यानी 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनकी नियुक्ति दो साल के निश्चित कार्यकाल के लिये हुयी थी और इस दौरान उनका तबादला तक नहीं किया जा सकता.
बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर केन्द्रीय सतर्कता आयोग की प्रारंभिक रिपोर्ट पर सोमवार को सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब दाखिल किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले, सोमवार को आलोक वर्मा से कहा था कि वह सीवीसी की रिपोर्ट पर आज ही सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब दाखिल करें. साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इस मामले की सुनवाई के निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव नहीं किया जायेगा. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वर्मा के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने जवाब दाखिल करने के लिये सोमवार की सुबह जब थोड़ा वक्त देने का अनुरोध किया तो न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई का कार्यक्रम स्थगित करने से इनकार कर दिया.