पद्मश्री एवं पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि हिमालय को बचाने और उसे संवारने के लिए गांवों और ग्रामीणों की भागीदारी जरूरी है। पर्यावरण के अनुकूल तकनीकी सहायता पहुंचाने से न सिर्फ वे खुद आगे बढ़ेंगे बल्कि हिमालय को होने वाले नुकसान से भी बचाएंगे। मंगलवार को केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) के सभागार में आयोजित कार्यशाला में जोशी ने कहा कि हिमाचल के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग हालात हैं। ऐसे में स्थानीय समुदाय केंद्रित तकनीक को प्राथमिकता देना जरूरी है।
इस बात पर खास ध्यान देना जरूरी है कि जो उपकरण या तकनीक तैयार की जा रही है, वह फील्ड में लोगों के काम की है या नहीं। इसी बिंदु पर फोकस करने से लोगों को तकनीक का फायदा मिलेगा और तकनीक की सार्थकता साबित होगी।केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन फार माउंटेन ईको सिस्टम : लाइवलीहुड इनहैंसमेंट थ्रू एक्शन रिसर्च एंड नेटवर्किंग (टाइम-लर्न) प्रोग्राम की सालाना सामूहिक निगरानी कार्यशाला के दूसरे व अंतिम दिन चर्चा के दौरान टाइम के चेयरमैन और जीबीपीयूएटी के वीसी डॉ. तेज प्रताप,
डब्ल्यूआईआई देहरादून की डॉ. रुचि बडोला, जीबीपीआईएचईडी श्रीनगर के डॉ. आरके मैखुरी, हिमकास्ट के सदस्य सचिव डॉ. कुनाल सत्यार्थी, एचआरजी के डॉ. लाल सिंह और डीएसपी के डॉ. सुनील कुमार अग्रवाल ने भी विचार रखे। टाइम लर्न के चेयरमैन डॉ. तेज प्रताप ने कहा कि नीतियों को समय समय पर रिवाइज करना बेहद जरूरी है। हिमाचल में बंदरों की समस्या का सीधा कारण है कि आज बंदरों और इंसानों दोनों की आबादी बढ़ी है।
ऐसे में अगर उन्हें संरक्षण देने और बचाने की बात की जाती है तो फिर मानव अपनी आबादी नियंत्रित करे। ऐसा नहीं है तो विभाग को बंदर न मारने की अपनी नीति पर पुनर्विचार करना होगा। कहा कि रिवाइज करने के साथ ही किसी भी नई नीति को बनाने से पहले प्री पॉलिसी रिसर्च भी करना चाहिए ताकि लोगों के लिए बनाई जा रही नीतियों से लोगों को सही फायदा मिल सके।