देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी में खींचतान मामले में पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई जारी है. दरअसल सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा पर लगे आरोपों पर सीवीसी की रिपोर्ट पर सुनवाई की जाए या नहीं इसको लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत में जिरह जारी है. कल भी इस मामले पर सुनवाई हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, ”दो आला अधिकारियों का झगड़ा रातों रात सामने नहीं आया. ऐसा जुलाई से चल रहा था. उन्हें आधिकारिक काम से हटाने से पहले चयन समिति से बात करने में क्या दिक्कत थी? 23 अक्टूबर को अचानक फैसला क्यों लिया गया?”सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल पर सीवीसी के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ”सीबीआई में जैसे हालात थे. उसमें सीवीसी मूकदर्शक बन कर नहीं बैठा रह सकता था. ऐसा करना अपने दायित्व को नज़रअंदाज़ करना होता. सीबीआई निदेशक शिकायतों की जांच से जुड़े ज़रूरी कागज़ात मुहैया नहीं करवा रहे थे. दोनों अधिकारी एक दूसरे के ऊपर छापा डाल रहे थे. सीवीसी का दखल देना ज़रूरी हो गया था.
सुनवाई के दौरान एटॉर्नी जनरल ने कहा, ”आधिकारिक काम से दूर रखने की कार्रवाई को ट्रांसफर बताकर एक बनावटी दलील रखी जा रही है. अगर हम ये प्रस्ताव लेकर चयन समिति के सामने जाते तो वहां से जवाब मिलता कि इसमें ट्रांसफर की बात कहां है?”
कल सुप्रीम कोर्ट में अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, ”जांच एजेंसी के डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर के बीच विवाद इस प्रतिष्ठित संस्थान की निष्ठा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा रहा था. वर्मा और अस्थाना के बीच संघर्ष ने अभूतपूर्व और असाधारण स्थिति पैदा कर दी थी. इन दो शीर्ष अधिकारियों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना का झगड़ा सार्वजनिक हुआ जिसने सीबीआई को हास्यास्पद बना दिया. हमारा मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की इस प्रमुख जांच एजेन्सी में जनता का भरोसा बहाल हो. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि दो अधिकारियों के बीच खींचतान में केंद्र का दखल देना और कार्रवाई करना बिल्कुल जरूरी था.”दरअसल सुनवाई के दौरान जस्टिस के एम जोसफ ने सवाल पूछा था कि अधिकारी अपने विवाद को अंदर ही रखते, सरकार और सीवीसी को फैसला करने देते तो बात अलग थी. उन्होंने सार्वजनिक आरोप लगाने शुरू कर दिए थे, रोज़ अखबारों और टीवी में खबरें आ रही थीं.
चीफ जस्टिस ने इस पर पूछा कि कुछ खबरों का उदाहरण दे सकते हैं. चीफ जस्टिस के इस सवाल पर अटॉर्नी जनरल ने कुछ चैनल और अखबारों के नाम लिए रहे हैं जिनमें खबरें छपीं. वहीं उन्होंने कहा कि इसके अलावा भी बड़ी संख्या में मीडिया रिपोर्ट हैं और इसके चलते सरकार को कदम उठाना पड़ा.हालांकि अटॉर्नी जनरल ने कहा कि दोनों अधिकारी अब भी अपने पद पर हैं और उनकी आवास और दूसरी सुविधाएं बरकरार हैं. सिर्फ दफ्तर आने से मना किया गया है ताकि आरोपों की जांच हो सके. इसे अधिकारी को ट्रांसफर करना नहीं कहा जा सकता है.
इससे पिछली सुनवाई जो कि 29 नवंबर को करीब 4 घंटे चली थी, उसमें सुनवाई को कोर्ट ने इस बात तक सीमित रखा था कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का आदेश कानूनन वैध है या नहीं. कोर्ट ने उसी दिन आदेश दिया था कि 5 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि वर्मा के ऊपर लगे आरोपों पर सीवीसी की रिपोर्ट पर भी सुनवाई की जाए या नहीं.सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे. जिसके बाद सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था. इस मसले को अलग-अलग याचिकाओं के जरिए कोर्ट में रखा गया है.