हिंदू धर्म में मकर संक्राति का त्योहार प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है. सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्राति कहते हैं. यह त्योहार जनवरी महीने के चौदहवें दिन मनाया जाता है. सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है. इस तरह वर्ष में कुल मिलाकर 12 संक्रांति होती हैं, क्योंकि सूर्य हर महीने में राशि परिवर्तन करता है. लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति शामिल हैं.
मकर संक्रांति के दिन अलग-अलग पकवानों के साथ खिचड़ी बनाने और खाने का खास महत्व होता है. इसी कारण इस पर्व को कई जगहों पर खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है. दरअसल, चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और उरद की दाल को शनि का. हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं. मान्यता है कि खिचड़ी की गर्मी मंगल और सूर्य से जुड़ी है. इसलिए मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से राशि में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है. कहा जाता है कि इस दिन नए अन्न की खिचड़ी खाने से पूरे साल आरोग्य मिलता है.
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की ऐसी भी मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के दौरान बाबा गोरखनाथ के योगी खाना नहीं बना पाते थे और भूखे रहने की वजह से हर ढलते दिन के साथ कमजोर हो रहे थे. योगियों की बिगड़ती हालत को देखते हुए बाबा ने अपने योगियों को चावल, दाल और सब्जियों को मिलाकर पकाने की सलाह दी. यह भोजन कम समय में तैयार हो जाता था और इससे योगियों को ऊर्जा भी मिलती थी. बाबा गोरखनाथ ने इस दाल, चावल और सब्जी से बने भोजन को खिचड़ी का नाम दिया. यही कारण है कि आज भी मकर संक्रांति के पर्व पर गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी का मेला लगता है. इस दौरान बाबा को खासतौर पर खिचड़ी को भोग लगाया जाता है.