कुंभ मेला हिन्दू तीर्थयात्राओं में सर्वाधिक पावन तीर्थयात्रा है. कुंभ मेले में करोड़ों तीर्थयात्री हिस्सा लेते हैं. कुंभ मेले को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन कहा जाता है. कहा जाता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर एक व्यक्ति अपने समस्त पापों को धो डालता है और मोक्ष को प्राप्त हो जाता है.
कुंभ मेले में सबसे ज्यादा महत्व स्नान का है. कुंभ मेले में स्नान मानव के लिए एक खास आध्यात्मिक अनुभव होता है. प्रमुख स्नान तिथियों पर सूर्योदय के समय साधु-संत पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं. प्रत्येक समूह एक विशेष क्रम में परंपरा के अनुसार स्नान के लिए नदी में जगह लेता है. सभी समूहों के स्नान के बाद बाकी सभी मनुष्य गंगा में स्नान करते हैं.
मकर संक्रांति से शुरू होकर प्रयागराज कुंभ के प्रत्येक दिन स्नान का महत्व माना जाता है, लेकिन कुछ खास तिथियों पर स्नान का विशेष महत्व है. कुंभ मेला के आरंभ से कुछ तिथियों पर शाही स्नान होता है जिसमें अलग-अलग अखाड़ों के सदस्यों, संतों एवं उनके शिष्यों की आकर्षक शोभायात्रायें निकाली जाती हैं.
एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य के संक्रमण को ही संक्रान्ति कहते हैं. भारतीय ज्योतिष के अनुसार बारह राशियां मानी गयी हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन, जनवरी महीने में प्रायः 14 तारीख को जब सूर्य धनु राशि से (दक्षिणायन) मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण होता है तो मकर संक्रांति मनायी जाती है. लोग व्रत स्नान के बाद अपनी क्षमता के अनुसार कुछ न कुछ दान अवश्य करते हैं.
भारतीय पंचांग के पौष मास के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं. पूर्णिमा को ही पूर्ण चन्द्र निकलता है. कुम्भ मेला की अनौपचारिक शुरूआत इसी दिवस से चिन्हित की जाती है. इसी दिवस से कल्पवास का आरम्भ भी इंगित होता है.
ऐसी मान्यता है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है. इसी दिन प्रथम तीर्थांकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और यहीं संगम के पवित्र जल में स्नान किया था. इस दिवस पर मेला क्षेत्र में सबसे अधिक भीड़ होती है.
विद्या की देवी सरस्वती के अवतरण का यह दिवस ऋतु परिवर्तन का संकेत भी है. कल्पवासी बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं.
यह दिवस गुरू बृहस्पति की पूजा और इस विश्वास कि हिन्दू देवता गंधर्व स्वर्ग से पधारे हैं, से जुड़ा है. इस दिन पवित्र घाटों पर तीर्थयात्रियों की बाढ़ इस विश्वास के साथ आ जाती है कि वे सशरीर स्वर्ग की यात्रा कर सकेगें.
यह दिवस कल्पवासियों का अन्तिम स्नान पर्व है और सीधे भगवान शंकर से जुड़ा है. और माता पार्वती से इस पर्व के सीधे जुड़ाव के नाते कोई भी श्रद्धालु शिवरात्रि के व्रत ओर संगम स्नान से वंचित नहीं होना चाहता.