अयोध्या में राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक विवाद की सुनवाई से जस्टिस उदय यू ललित ने खुद को अलग कर लिया है. वह इस केस की सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सदस्य थे. जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने एक नई पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय की है. दरअसल, गुरुवार को संविधान पीठ के बैठते ही मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि न्यायमूर्ति ललित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पैरवी करने के लिए 1994 में अदालत में पेश हुए थे. यह जिक्र छेड़ने के बाद हालांकि, बाद में धवन ने यह भी कहा कि वह न्यायमूर्ति ललित के मामले की सुनवाई से अलग होने की मांग नहीं कर रहे, लेकिन न्यायाधीश ने स्वयं को मामले की सुनवाई से अलग करने का फैसला किया.
सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से पहले जस्टिस उदय यू ललित वकालत करते थे. वह गुजरात के बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति एनकाउंटर केस में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के वकील रह चुके हैं. जुलाई, 2014 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले पैनल ने उनके नाम की सिफारिश की थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह टू जी घोटाले मामले में भी प्रासीक्यूटर रह चुके हैं. ललित महाराष्ट्र के रहने वाले हैं और उन्होंने 1983 से वकालत शुरू की. वह पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ 1986 से 1992 तक काम कर चुके हैं. उन्होंने तमाम आपराधिक केस लड़े. मनी लांडरिंग के आरोपी हसन अली खान के खिलाफ भी वह केस लड़े थे