दरअसल, लोसर फेस्टिवल को मनाने की परम्परा हज़ारों सालों से चली आ रही है. इस दौरान लोग पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होकर नृत्य करते हैं. लोगों की खुशहाली और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं.
गौरतबल है की मानव संग्राहलय में भी चनसे (लद्दाख का किचन) और मने (प्रेयिंग वील) मौजूद है. फेस्टिवल के पहले दिन लद्दाक से आये कलाकरों ने पारंपरिक अनुष्ठान और नृत्य के साथ सात दिवसीय उत्सव परंपरागत तरीके से की जाने वाली पूजा-अर्चना के साथ लद्दाख से आए कलाकारों ने फेस्टिवल की शुरुआत की.
वहीं संग्रहालय परिसर में तैयार हिमालय ग्राम में बने भार चक्र की पूजा की गई, उसके बाद लोकगीतों पर जबरो नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी. बता दें, जबरो नृत्य लगभग एक हजार साल पुराना है, जिसे लद्दाख के नोमेडिक जनजातीय के लोग करते हैं.