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निम्मी

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निम्मी भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक रही हैं। उनका असली नाम ‘नवाब बानू’ था। बॉलीवुड की इस मासूम-सी ख़ूबसूरत अभिनेत्री का राज कपूर ने फ़िल्मी दुनिया से परिचय करवाया था। हालांकि निम्‍मी की फ़िल्मी शुरुआत सहायक अभिनेत्री के तौर पर राज कपूर और नर्गिस अभिनीत फ़िल्म ‘बरसात’ (1949) से हुई थी। दिलचस्‍प बात तो यह भी है कि इस ख़ूबसूरत अभिनेत्री पर राज कपूर की नज़र उस समय पड़ी, जब वे एक फ़िल्म की शूटिंग देख रही थीं। निम्मी अपनी समकालीन

नायिकाओं मधुबाला, नर्गिस, नूतन, मीना कुमारी, सुरैया और गीता बाली के समान ही प्रतिभाशाली थीं। निम्मी ख़ूबसूरत आँखों वाली सम्मोहक अभिनेत्री मानी जाती हैं। फ़िल्म में उनकी भूमिका को कभी भी सहनायिका के रूप में नहीं लिया गया। उन पर बहुत-सी फ़िल्मों के यादगार गीत फ़िल्माए गए थे। निर्देशक के. आसिफ़ की फ़िल्म ‘लव एंड गॉड’ उनकी आखिरी फ़िल्म थी।

जन्म
अभिनेत्री निम्मी का जन्म 18 फ़रवरी, 1933 को आगरा में हुआ था। उनकी माँ का नाम वहीदन था, जो अपने दौर की मशहूर गायिका और अभिनेत्री थीं। निम्मी के पिता अब्दुल हकीम मिलिट्री में ठेकेदार थे। जब निम्मी केवल नौ वर्ष की थीं, तब इनकी माँ का स्वर्गवास का हो गया। उनके पिता ने निम्मी को ऐबटाबाद[1]रहने के लिए दादी के पास भेज दिया। निम्मी के पिता स्वयं आगरा छोड़ कर मेरठ आ गये।

मुम्बई आगमन
सन 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद शरणार्थियों की भीड़ में निम्मी और उनकी दादी भी थीं। निम्मी अपनी दादी के साथ बम्बई (वर्तमान मुम्बई) आ गयीं, जहाँ उनकी मौसी ज्योति रहती थीं, जो की हिन्दी फ़िल्मों में काम करती थीं। अब बम्बई निम्मी का नया आशियाना था, जहाँ एक रिफ्यूजी लड़की इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए तैयार थी।

विवाह
निम्मी कभी स्कूल नहीं गई थीं। इसलिए घर की पढ़ाई ने उन्हें उर्दू तक ही सीमित रखा। वैसे फ़िल्मों में काम करते समय उन्होंने अंग्रेज़ी ज़रूर सीखी थी, लेकिन वे बातचीत अपनी ही जुबान में करती थीं। एक दिन काम करते वक्त निम्मी की मुलाकात लेखक अली रजा से हुई। संवाद की रिहर्सल कराने के लिए अली रजा ने निम्मी की मदद की। बाद में अली रजा ने ही उनमें शायरी का शौक़ पैदा कर दिया। बाद में यह शायरी दोस्ती और प्यार में बदल गई तो निम्मी ने लेखक-पटकथाकार अली रजा से शादी कर ली

फ़िल्मी शुरुआत
सन 1948 में प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान, सेंट्रल स्टूडियो बम्बई में अपनी फ़िल्म ‘अंदाज़’ की शूटिंग कर रहे थे। ‘अंदाज़’ में दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ थीं नर्गिस। इन तीनों ने पहली और आखिरी बार एक साथ काम किया था। निम्मी भी यहाँ मौजूद थीं। वह अक्सर शूटिंग देखने आती थीं। यहीं उन्हें राज कपूर ने देखा। उन दिनों राज कपूर फ़िल्म ‘बरसात’ (1949) के लिए एक नए चेहरा तलाश रहे थे। ‘अंदाज’ के सेट पर निम्मी का शर्मीला व्यवहार देखने के बाद ‘बरसात’ में अभिनेता प्रेमनाथ के साथ निम्मी को ले लिया गया। फ़िल्म ‘बरसात’ में निम्मी हृदयहीन शहरी प्रेम नाथ आदमी को प्यार करती है। निम्मी ने इस फ़िल्म में एक मासूम पहाड़ी गड़ेरिन की भूमिका निभाई थी।

सफलता
‘बरसात’ फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर इतिहास बनाया। ‘बरसात’ को अभूतपूर्व महत्त्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलता मिली थी। स्थापित और लोकप्रिय सितारों नर्गिस, राज कपूर और प्रेमनाथ की मौजूदगी के बावजूद निम्मी ने अपना किरदार बखूबी निभाया था। फ़िल्म के लोकप्रिय शीर्षक गीत “बरसात में हम से मिले तुम”, “जिया बेक़रार है”, “पतली कमर है” सभी निम्मी पर फ़िल्माये गये थे। ‘बरसात’ में पहली बार हिन्दी फ़िल्मों में बलात्कार का सीन सामने आया और यह बलात्कार क्लासिक बन गया। फ़िल्म का चरमोत्कर्ष भी नवेली अभिनेत्री के इर्द-गिर्द घूमता रहा। ‘बरसात’ की भारी सफलता ने निम्मी को स्टार बना दिया। राज कपूर (भवंरा), देव आनंद (सज़ा, आँधियाँ) जैसे चोटी के नायकों के साथ निम्मी ने काम किया। ‘दीदार’ (1951) और ‘दाग’ (1952) जैसी फ़िल्मों की सफलता के बाद दिलीप कुमार के साथ उनकी बहुत लोकप्रिय और भरोसेमंद स्क्रीन जोड़ी साबित हुई।

स्थापित अभिनेत्रियों के साथ कार्य
निम्मी ने नर्गिस के साथ ‘बरसात’ और ‘दीदार’ फ़िल्में कीं। उन्होंने मधुबाला के साथ ‘अमर’, सुरैया के साथ ‘शमा’, गीता बाली के साथ ‘उषा किरण’ और मीना कुमारी के साथ ‘चार दिल चार राहें’ आदि फ़िल्मों में काम किया। निम्मी ने फ़िल्म ‘बेदर्दी’ (1951) में काम किया और अपने खुद के गीत गाए। हालांकि यह क्रम जारी नहीं रखा। महबूब ख़ान ने फ़िल्म ‘आन’ (1952) में निम्मी को दिलीप कुमार, प्रेमनाथ और नादिरा के साथ लिया। ‘आन’ नादिरा की पहली फ़िल्म थी। ये फ़िल्म भारत की पहली टेक्नीकलर फ़िल्म थी। इसके अलावा फ़िल्म का बजट बहुत बड़ा था। यह फ़िल्म भारत के साथ विदेश में भी एक साथ रिलीज़ की गयी थी। इस फ़िल्म के वक्त निम्मी की लोकप्रियता का यह आलम था कि इस फ़िल्म को पहले संपादित फ़िल्म फाइनेंसरों और वितरकों को दिखाया गया था। उन्होंने शिकायत की कि निम्मी का चरित्र बहुत जल्दी मर गया है। लिहाज़ा ‘आन’ में सपना फ़िल्माया गया ताकि निम्मी अधिक समय तक परदे पर दिखें।

फ़िल्म ‘आन’ का लंदन प्रीमियर
‘आन’ में निम्मी की मौत और नृत्य लोकप्रिय थे। यह पहली हिन्दी फ़िल्म थी, जिसका अत्यंत भव्य प्रीमियर लंदन में हुआ था। यहाँ निम्मी भी मौजूद थीं। फ़िल्म ‘आन’ का अंग्रेज़ी संस्करण ‘सेवेज प्रिंसेज’ था। निम्मी ने ऐरल फ़्लिन सहित कई पश्चिमी फ़िल्मी हस्तियों से मुलाकात की। जब फ़्लिन ने निम्मी के हाथ पर चुंबन करने का प्रयास किया, तब उन्होंने हाथ दूर खींच लिया, और कहा- “मैं एक भारतीय लड़की हूँ, तुम चुंबन नहीं कर सकते हो।” यह घटना सुर्खियों में आ गयी और लन्दन के प्रेस ने “भारत की अनकिस्ड लड़की” के रूप में निम्मी को पेश किया। ‘आन’ की कामयाबी के बाद महबूब ख़ान ने अपनी अगली फ़िल्म ‘अमर’ (1954) में निम्मी को लिया।[3]

अन्य फ़िल्मी सफलताएँ
फ़िल्म ‘अमर’ में दिलीप कुमार और मधुबाला भी थे। ‘अमर’ में भी बलात्कार का सीन निम्मी पर फ़िल्माया गया, हालांकि फ़िल्म को व्यावसायिक सफलता नहीं मिल सकी। निम्मी ने फ़िल्म ‘डंका’ (1954) के ज़रिये प्रोडक्शन हाउस खोला। ‘कुंदन’ (1955) नाम की फ़िल्म भी बनाई, जिसमें सोहराब मोदी के साथ नए नवेले सुनील दत्त भी थे। फ़िल्म ‘कुंदन’ में निम्मी ने माँ और बेटी की यादगार दोहरी भूमिका निभाई थी। ‘उड़न खटोला’ (1955) दिलीप कुमार के साथ पाँच फ़िल्मों के बाद आखिरी फ़िल्म थी। यह फ़िल्म निम्मी के सिने कैरियर की सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस सफलता थी। ‘उड़न खटोला’ के गाने आज भी लोकप्रिय हैं। वर्ष 1956 में ‘बसंत बहार’ और ‘भाई भाई’ फ़िल्म उनकी दो बड़ी सफल फ़िल्में थीं। 1957 में 24 साल की उम्र में निम्मी को ‘भाई भाई’ में निभाई भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का आलोचक पुरस्कार प्राप्त मिला। 1950 के दशक में निम्मी ने प्रसिद्ध निर्देशकों के साथ काम किया, जिनमें चेतन आनंद की ‘अंजलि’, के. ए. अब्बास की ‘चार दिल चार राहें’ और विजय भट्ट की ‘अंगुलिमाल’ थी

मधुबाला से दोस्ती

अभिनेत्री श्यामा के जन्मदिन पर
ऊपर से बाईं ओर- जबीन जलील, सुनीता प्रसाद, अज़रा, निशि, शशिकला, निम्मी,

यासमिन
नीचे से बाईं ओर- बेगम पारा, श्यामा, सितारा देवी
महबूब ख़ान के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘अमर’ (1954) अपने समय की आगे की फ़िल्म थी, जो संभवत इसी कारण काफ़ी दर्शकों को पंसद नहीं आयी। लेकिन इस फ़िल्म में मधुबाला और निम्मी, इन दोनों अभिनेत्रियों के काम की सराहना हुई। फ़िल्म में मधुबाला ने मीना कुमारी की जगह पर काम किया था। मीना कुमारी ने फ़िल्म की 15 दिनों तक शूटिंग करने के बाद महबूब ख़ान से मनमुटाव के कारण फ़िल्म को छोड़ दिया था। इस कारण मधुबाला तथा निम्मी को एक साथ काम करने का मौका मिला। फ़िल्म ‘अमर’ के सेट पर निम्मी और मधुबाला में गहरी दोस्ती हो गयी थी। वे अपने भोजन के साथ-साथ मेकअप रूम और अपने अनुभवों को भी शेयर करती थीं। दोनों इतनी गहरी दोस्त हो गयी थीं कि उनके बीच दिलीप कुमार को लेकर भी चर्चाएँ होने लगीं, जो उस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में थे

ग़लत निर्णय
निम्मी ने उस दौर में जोखिम भी लिए और कुछ ग़लतियाँ भी कीं। वे फ़िल्म ‘चार दिल चार राहें’ (1959) में एक वेश्या के रूप में नज़र आईं, जबकि बी. आर. चोपड़ा की ‘साधना’ (1958) को उन्होंने खारिज कर दिया। वर्ष 1963 में ‘वो कौन थी’ निम्मी ने ठुकरा दी। ‘साधना’ फ़िल्म ने वैजयंती माला को चमकाया और ‘वो कौन थी’ ने साधना को प्रसिद्धि दिलवाई। दोनों बार निम्मी साधना से हारीं। एक बार ‘साधना’ फ़िल्म से तो दूसरी बार साधना अभिनेत्री से। निम्मी ने फिर से एक ग़लत फैसला लिया। मौक़ा था हरनाम सिंह रवैल की फ़िल्म ‘मेरे महबूब’ का। यह बड़े बजट की और मुस्लिम विषय पर बनने वाली रंगीन फ़िल्म थी। ‘मेरे महबूब’ में जो रोल साधना ने निभाया, वह पहले निम्मी को मिला था। निम्मी का रोल बीना राय को मिला। निम्मी फिर चुक गयीं

नई नायिकाओं का आगमन
1960 के दशक में साधना, नन्दा, आशा पारेख, माला सिन्हा और सायरा बानो जैसी मॉडल अभिनेत्रियों की नई नस्ल हिन्दी फ़िल्मों में नायिका बन कर आने लगी थी। भारतीय सिनेमा में अब नायिका की अवधारणा बदल रही थी। ‘पूजा के फूल’ (1964) में अंधी लड़की का रोल और अशोक कुमार के साथ ‘आकाशदीप’ (1965) में ‘मूक पत्नी’ रिलीज़ हुई। एक स्टार के रूप में निम्मी की लोकप्रियता कम होने लगी थी। उन्होंने शादी कर फ़िल्मों को अलविदा कह दिया। के. आसिफ़ की ‘लव एंड गौड’ उनके पास थी। यह फ़िल्म लैला-मजनू की कहानी पर आधारित थी। ‘मुग़ल-ए-आजम’ (1960) के बाद के. आसिफ़ ‘लव एंड गौड’ पर काम कर रहे थे। निम्मी लैला की भूमिका में थीं और गुरुदत्त मजनू के रूप में, लेकिन गुरुदत्त की ख़ुदकुशी के बाद इस फ़िल्म की शूटिंग पर प्रभाव पड़ा। अब संजीव कुमार को मजनू की भूमिका में लिया गया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही के. आसिफ़ का इंतकाल हो गया। अब इस फ़िल्म को मनहूस मान लिया गया। आधी-अधूरी फ़िल्म 6 जून, 1986 को रिलीज़ हुई। तब संजीव कुमार इस दुनिया में नहीं थे। के. आसिफ़ की विधवा अख्तर आसिफ़ ने इसे रिलीज़ करवाया था। एक बेहतरीन फ़िल्म जो टेक्नीकलर में थी, पहले ही दिन दम तोड़ गयी।

प्रमुख फ़िल्में
अभिनेत्री निम्मी को 1950 के दशक की महान् अग्रणी महिलाओं में से एक माना जाता है। उनकी कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-

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