महाशिवरात्रि आने को है और सभी भक्तों ने इसकी धूमधाम से तैयारी शुरू कर दी है. वैसे महाशिवरात्रि के बारे में कई मान्यताएं हैं. आज आपको बताते हैं भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कहानी. जी हां, पुराणों में ऐसा दावा किया गया है कि महाशिवरात्रि के पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. तो चलिए आज आपको भी अवगत करवाते हैं इस खूबसूरत कथा से-
माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करने की इच्छुक थीं. सभी देवता गण भी इसी मत के थे कि पर्वत राजकन्या पार्वती का विवाह शिव से होना चाहिए. देवताओं ने कन्दर्प को पार्वती की मद्द करने के लिए भेजा. लेकिन शिव ने उन्हें अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया. अब पार्वती ने तो ठान लिया था कि वो विवाह करेंगी तो सिर्फ भोलेनाथ से. शिव को अपना वर बनाने के लिए माता पार्वती ने बहुत कठोर तपस्या शुरू कर दी. उनकी तपस्या के चलते सभी जगह हाहाकार मच गया. बड़े-बड़े पर्वतों की नींव डगमगाने लगी. ये देख भोले बाबा ने अपनी आंख खोली और पार्वती से आवहन किया कि वो किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें. शिव ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक तपस्वी के साथ रहना आसान नहीं है.
लेकिन माता पार्वती तो अडिग थी, उन्होंने साफ कर दिया था कि वो विवाह सिर्फ भगवान शिव से ही करेंगी. अब पार्वती की ये जिद देख भोलेनाथ पिघल गए और उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गए. शिव को लगा कि पार्वती उन्ही की तरह हठी है, इसलिए ये जोड़ी अच्छी बनेगी.
अब शादी की तैयारी जोरों पर शुरू हो गई. लेकिन समस्या ये थी कि भगवान शिव एक तपस्वी थे और उनके परिवार में कोई सदस्य नहीं था. लेकिन मान्यता ये थी कि एक वर को अपने परिवार के साथ जाकर वधू का हाथ मांगना पड़ता है. अब ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव ने अपने साथ डाकिनियां,भूत-प्रेत और चुड़ैलों को साथ ले जाने का निर्णय किया. तपस्वी होने के चलते शिव इस बात से अवगत नहीं थे कि विवाह के लिए किस प्रकार से तैयार हुआ जाता है. तो उनके डाकिनियों और चुड़ैलों ने उनको भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला पहना दी.
जब ये अनोखी बारात पार्वती के द्वार पहुंची, सभी देवता हैरान रह गए. वहां खड़ी महिलाएं भी डर कर भाग गई. भगवान शिव को इस विचित्र रूप में पार्वती की मां स्वीकार नहीं कर पाई और उन्होंने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया. स्थितियां बिगड़ती देख पार्वती ने शिव से प्राथना की वो उनके रीति रिवाजों के मुताबिक तैयार होकर आंए. शिव ने उनकी प्राथना स्वीकार की और सभी देवताओं को फरमान दिया कि वो उनको खूबसूरत रूप से तैयार करें. ये सुन सभी देवता हरकत में आ गए और उन्हें तैयार करने में जुट गए. भगवान शिव को दैवीय जल से नहलाया गया और रेशम के फूलों से सजाया गया. थोड़ी ही देर में भोलेनाथ कंदर्प से भी ज्यादा सुदंर लगने लगे और उनका गोरापान तो चांद की रोशनी को भी मात दे रहा था.
जब भगवान शिव इस दिव्य रूप में पहुंचे, पार्वती की मां ने उन्हें तुरंत स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह समारोह शुरू हो गया. माता पार्वती और भोलेबाबा ने एक दूसरे को वर माला पहनाई और ये विवाह संपन हुआ.