मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी पाने वालों में प्रदेश की पहली ट्रांसजेंडर संजना सिंह बनी। संजना सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग के डायरेक्टर की निज सचिव नियुक्त की गईं हैं। वह कहती हैं कि 15 साल की उम्र में परिवार छोड़कर ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को ज्वाॅइन करना पड़ा, लेकिन अब समाज में मुझे मेरी जगह मिल गई।
संजना कहती हैं कि शुरू-शुरू में उन्हें घर-घर जाकर त्योहारों और बच्चों के जन्म पर बधाइयां देकर कमाने के लिए दबाव डाला जाता था। लेकिन यह काम मुझे पसंद नहीं था। जब इसके लिए मना किया तो कम्युनिटी ने मेरा साथ छोड़ दिया। आज सफल हूं तो परिवार और समाज सभी साथ हो गए। 36 वर्ष की संजना 2008 से एनजीओ से जुड़कर समाजसेवा करने लगीं। उन्होंने बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर काम किया।
संजना मध्यप्रदेश की जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की पहली ट्रांसजेंडर पैरालीगल वॉलेंटियर भी हैं। साथ ही उन्हें लोक अदालत में खंडपीठ का भी सदस्य बनाया गया। इस बार लोक अदालत में खंडपीठ की सदस्य के रूप में जज के साथ बैठकर प्रकरणों की सुनवाई भी की।
संजना कहती हैं कि देश में ट्रांसजेंडर होना एक अभिशाप है और समाज इन्हें अपनाने से कतराता है। ट्रासंजेंडरों को मुख्यधारा में लाने के लिए उन्हें शिक्षा, नौकरी और व्यवसाय के अवसर उपलब्ध कराने होंगे। दुख के क्षण तब सबसे ज्यादा होते हैं, जब बच्चों को परिवार छोड़कर ट्रांसजेंडर समुदाय में आना पड़ता है। मेरे माता-पिता दसवीं कक्षा तक दूसरों से इस बात को छुपाकर अन्य भाई-बहन के साथ मुझे स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते थे। बाद में सभी को पता चल गया और मजबूरन मुझे अपनी कम्युनिटी में शामिल होना पड़ा। संजना का सपना है कि अपनी कम्युनिटी के लोगों को इतना जागरूक कर सकूं कि वे मुख्यधारा से जुड़कर अपनी अलग पहचान बना सकें।
संजना 2016 में स्वच्छता अभियान से जुड़ीं। उन्होंने समाज के साथ मिलकर मप्र के 15 ग्राम पंचायतों में से 7 ग्राम पंचायत को खुले में शौचमुक्त कराने में अहम भूमिका निभाई। इस विषय पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनी और एक बुक भी लांच हुई। इसके बाद 2016 में उन्हें मप्र में स्वच्छता की ब्रांड एम्बेसडर के लिए चुना गया। उन्हें अभिनेता अमिताभ बच्चन के हाथों पुरस्कार भी मिला।