सुप्रीम कोर्ट ने कानून मंत्रालय से इस बात के लिए नाराजगी जताई है कि उसने आदेश के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में उम्मीदवारों की संपत्ति में आय से अधिक वृद्धि को ट्रैक करने के लिए एक स्थायी तंत्र क्यों नहीं बनाया? सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी जारी कर दो हफ्ते में विधायी विभाग के सचिव से जवाब देने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा है कि फार्म 26 में वो घोषणा शामिल क्यों नहीं की गई है जिसके तहत उम्मीदवार को बताना होता है कि वह जनप्रतिनिधित्व कानून के किसी प्रावधान के तहत अयोग्य नहीं है.सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें लोकप्रहरी संस्था द्वारा दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान कहीं.
15 फरवरी 2018 को चुनाव सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बडा फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा था कि चुनाव में नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी, जीवनसाथी और आश्रितों की आय के स्रोत का भी खुलासा करेगा. अभी तक के नियमों के मुताबिक प्रत्याशी को नामांकन के वक्त अपनी, जीवनसाथी और तीन आश्रितों की चल-अचल संपत्ति व देनदारी की जानकारी देनी होती है. लेकिन इसमें आय के स्त्रोत बताने का नियम नहीं थे. सुनवाई में चुनाव आयोग ने भी इसका समर्थन किया था तो केंद्र सरकार भी सहमत दिखी. वहीं सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सांसद और विधायकों की संपत्ति में 500 गुना बढ़ोतरी पर सवाल खड़े किए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि ये राज्य का कर्तव्य है कि वो मतदाताओं तक सासंदों, विधायकों के बारे में पूरी जानकारी पहुंचाए.सरकार ऐसा स्थाई मैकेनिज्म बनाए जो वक्त-वक्त पर सासंद, विधायकों और उनके सहयोगियों की संपत्ति पर नजर रखे और डेटा इकट्ठा करे. अगर किसी की आय से अधिक संपत्ति का मामला आता है तो इसकी रिपोर्ट तैयार करे और या तो कार्रवाई के लिए एजेंसी में दे या फिर सदन में रखे. साथ ही इस पूरी रिपोर्ट और उसकी जांच को सावर्जनिक किया जाए ताकि अगली बार प्रत्याशी चुनाव लडता है तो मतदाताओं को उसके बारे में जानकारी हो. सासंद विधायकों द्वारा आय से अधिक संपदा इकट्ठा करना रूल ऑफ लॉ नहीं बल्कि रूल ऑफ माफिया का रास्ता साफ करता है.