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कभी कांग्रेस का सबसे मजबूत किला माना जाता था भोपाल, अब है बीजेपी का गढ़…

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आलम ये है कि पिछले ढाई दशक से हर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, जबकि बीजेपी ने इस सीट से जिस भी कैंडिडेट पर हाथ आज़माया, उसने बाज़ी जीत ली.
 
मैमूना सुल्तान कांग्रेस के टिकट पर 1957 का लोकसभा चुनाव जीतकर भोपाल की पहली सांसद बनीं. 1962 में भी उन्होंने अपनी जीत का क्रम बरकरार रखा, लेकिन 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के जेआर जोशी ने मैमूना को जीत की हैट्रिक लगाने से रोक दिया और भोपाल सीट पर पहली बार गैर कांग्रेसी दल का कब्जा हुआ. देश के पूर्व राष्ट्रपति रहे शंकरदयाल शर्मा ने 1971 में एक बार फिर इस सीट पर कांग्रेस की वापसी करा दी. लेकिन, आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में शंकरदयाल शर्मा भी कांग्रेस की हार को नहीं रोक सके.
हालांकि कांग्रेस ने 1980 के चुनाव में फिर वापसी की और 1984 के चुनाव में उसे बरकरार भी रखा. लेकिन, 1989 के लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट पर बीजेपी ने अपनी जीत का जो सिलसिला शुरु किया वह 2014 के चुनाव तक बरकरार रहा. यही वजह है कि कभी कांग्रेस का मजबूत किला कहलाने वाली भोपाल सीट आज बीजेपी का गढ़ कही जाती है.
जहां एक ओर कांग्रेस ने भोपाल लोकसभा सीट 6 बार फतेह की है तो वहीं यहां 8 बार कमल खिला है. जबकि जनसंघ और लोकदल भी एक-एक बार यहां जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. ऐसे में भोपाल के सियासी इतिहास को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि बीजेपी के इस मजबूत गढ़ को ध्वस्त करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. हालांकि विधानसभा चुनाव में मिली जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं, जिसके चलते बीजेपी के लिए भी अपने मजबूत गढ़ को बचाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा.

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