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वरिष्ठ IPS राजेंद्र मिश्रा के पिता की मौत बनी पहेली कौन सच्चा-कौन झूठा..

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दो महीने पहले मध्यप्रदेश के आईपीएस ऑफिसर ने दावा किया था कि भोपाल में उनके सरकारी बंगले के एक रूम में उनके पिता का इलाज चल रहा है, उन्होंने दावा किया कि इलाज के बाद उनके पिता की हालत में सुधार भी है, लेकिन इस दौरान उनकी माता, भाई-बहनों और पारंपरिक तरीके से इलाज करने वाला शख्स जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पंचमढ़ी से लाई गई प्राकृतिक औषधियों से उनका इलाज कर रहा है, इन सबके अलावा उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा.मध्यप्रदेश कैडर के आईपीएस राजेंद्र मिश्रा के पिता को निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने 14 जनवरी को मृत घोषित कर दिया था, अस्पताल के अधिकारियों ने उसी दिन मृत्यु प्रमाण पत्र भी सौंप दिया था. ये कहानी अजीब लगती है, लेकिन एडीजीपी मिश्रा जो खुद 55 साल के हैं, वे ऐसा नहीं सोचते. वो इस राज्य मानवाधिकार आयोग की टीम द्वारा भेजी गई डॉक्टरों के दल की जांच की कोशिश का भी विरोध कर चुके हैं.

एडीजी मिश्रा कहते हैं कि एलोपैथी दुनिया की अंतिम दवा नहीं है, विज्ञान से परे भी बहुत सारे तरीके हैं, मेरे पिता जिंदा हैं, वे एक ऐसे मरीज हैं जिनका इलाज चल रहा है. उन्होंने 6 दशकों तक योग किया है, वे योग निद्रा में हैं. अगर डॉक्टरों की उन्हें जगाने की कोशिशों में कुछ गलत हो जाए तब कौन जिम्मेदार होगा. क्या इसे हत्या नहीं कहा जाएगा.
वे आगे कहते हैं कि अगर मेरे पिता मृत हैं तो अब तक उनका शरीर सही-सलामत कैसे है? आप कभी डैड बॉडी का इलाज नहीं करते हैं. आप एक मृत चूहे या मृत छिपकली के साथ भी एक घंटे तक नहीं रह पाते. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि बाहरी लोग मेरे निजी मामले में क्यों दखल दे रहे हैं. मेरे पिता का इलाज कराना मेरा मौलिक अधिकार है. मैं किसी अपराध या भ्रष्टाचार के मामले से नहीं जुड़ा. 23 फरवरी को मिश्रा के पिता की जांच के लिए तीन एलोपैथी और तीन आयुर्वेद के कुल छह डॉक्टरों की टीम मिश्रा के बंगले पर ओडिशा सरकार के रिटायर्ड अधिकारी कुलमणि मिश्रा की जांच के लिए पहुंची, लेकिन उनके बंगले पर तैनात पुलिस ने टीम को अंदर जाने से रोक दिया.

पिछले महीने राजेंद्र मिश्रा की मां शशिमणि मिश्रा ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में इस मामले में किसी भी हस्तक्षेप के विरोध में याचिका लगाई है. इसके साथ ही उन्होंने मानवाधिकार आयोग को लिखा है कि आयोग के पैनल द्वारा उनके जीवन, सम्मान और आजादी के अधिकार का हनन हुआ है. कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार और आयोग को नोटिस दिया है, हालांकि कोर्ट ने इस संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया है. वहीं मानवाधिकार आयोग के एक आदेश पर राज्य पुलिस के अभियोजन पक्ष ने कहा कि कोई भी कार्रवाई करने से पहले कोर्ट के आदेश का इंतजार करना चाहिए. इसके साथ ही ये भी बताया गया कि डॉक्टरों की टीम को मिश्रा के बंगले में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई.

साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आयोग ने किस धारा के तहत कार्रवाई की वह स्पष्ट नहीं है. इसमें कहा गया है कि आयोग के आदेश में यह नहीं बताया गया है कि मिश्रा के घर से कौन से दस्तावेज जब्त किए जाने थे. बंसल अस्पताल, जहां कुलमणि मिश्रा 13 जनवरी तक एडमिट थे, वहां के प्रवक्ता लोकेश झा ने बताया कि उसके अगले दिन ही उनकी मौत हो गयी थी. जिसके बाद मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ शव परिजनों को सौंप दिया गया था.

वहीं इस मामले में नाड़ी वैद्य राधेश्याम शुक्ला का बयान नहीं मिल सका है, जो एडीजी के पिता का इलाज कर रहे हैं. वहीं मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार जेपी राव का कहना है कि पैनल ने जो भी एक्शन लिया है वो कानून के तहत ही लिया है और जो ऑर्डर पास किये हैं वो भी कानून के मुताबिक ही हैं. सोमवार को आयोग ने इस मामले में एक कदम बढ़ाते हुए राज्य के डीजीपी को निर्देश दिया है कि एक वरिष्ठ अधिकारी को मिश्रा के घर भेजा जाए और आयोग के आदेश को पूरा करके 26 मार्च तक जवाब भेजा जाए.

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