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पहली फिल्म में जयाप्रदा ने केवल 3 मिनट का किया था रोल…

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बॉलीवुड में जयाप्रदा का नाम उन गिनी-चुनी अभिनेत्रियों में हैं, जिनमें सौंदर्य और अभिनय का अनूठा संगम देखने को मिलता है। महान फिल्मकार सत्यजीत रे जयाप्रदा के सौंदर्य और अभिनय से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने जयाप्रदा को विश्व की सुंदरतम महिलाओं में एक माना था। सत्यजीत रे उन्हें लेकर एक बांग्ला फिल्म बनाने के लिए इच्छुक थे लेकिन स्वास्थ्य खराब रहने के कारण उनकी योजना अधूरी रह गई।

जयाप्रदा का मूल नाम ललिता रानी है उनका जन्म आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव राजमुंदरी में 3 अप्रैल 1962 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता कृष्णा तेलूगु फिल्मों के डिस्ट्रीब्यूटर थे। बचपन से ही जयाप्रदा का इंट्रेस्ट डांस की ओर था। उनकी मां नीलावनी ने डांस के प्रति उनके बढ़ते इंट्रेस्ट को देखा और उन्हें डांस सीखने के लिए दाखिला दिला दिया। चौदह वर्ष की उम्र में जयाप्रदा को अपने स्कूल में डांस परफॉर्मेंस करने का मौका मिला। जिसे देखकर एक फिल्म निर्देशक उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी फिल्म ‘भूमिकोसम’ में उनसे डांस करने की पेशकश की लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को रिजेक्ट कर दिया। बाद में अपने माता-पिता के जोर देने पर जयाप्रदा ने फिल्म में डांस करने के लिए हामी भरी।

इस फिल्म के लिए जयाप्रदा को केवल 10 रुपये प्राप्त हुए लेकिन उनके तीन मिनट के डांस को देखकर दक्षिण भारत के कई फिल्म निर्माता -निर्देशक काफी प्रभावित हुए और उनसे अपनी फिल्मों में काम करने की पेशकश की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। साल 1976 जयाप्रदा के सिने कैरियर का महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। इस साल उन्होंने के. बालचंद्रन की ‘अंथुलेनी कथा’, के. विश्वनाथ की ‘श्री श्री मुवा’ और एक धार्मिक फिल्म ‘सीता कल्याणम’ में सीता की भूमिका निभाई। इन फिल्मों की सफलता के बाद जयाप्रदा दक्षिण भारत में अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गईं।

साल 1977 में जयाप्रदा के सिने करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘आदावी रामाडु’ प्रदर्शित हुई। जिसने टिकट खिड़की पर नये कीर्तिमान स्थापित किये। इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता एन.टी. रामाराव के साथ काम किया और शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचीं। साल 1979 में के. विश्वनाथ की ‘श्री श्री मुवा’ की हिंदी में रिमेक फिल्म ‘सरगम’ के जरिये जयाप्रदा ने हिंदी फिल्म जगत में भी कदम रखा। इस फिल्म की सफलता के बाद वह रातों रात हिंदी सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गयी और अपने दमदार अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांकित भी की गयी। सरगम की सफलता के बाद जयाप्रदा ने लोक परलोक, टक्कर, टैक्सी ड्राइवर और प्यारा तराना जैसी कई दोयम दर्जे की फिल्मों में काम किया लेकिन इनमें से कोई फिल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई। इस बीच जयाप्रदा ने दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम करना जारी रखा।

साल 1982 में के. विश्वनाथ ने जयाप्रदा को अपनी फिल्म ‘कामचोर’ के जरिये दूसरी बार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लॉन्च किया। इस फिल्म की सफलता के बाद वह  एक बार फिर से हिंदी फिल्मों में अपनी खोयी हुई पहचान बनाने में कामयाब हो गयी और यह साबित कर दिया कि वह अब हिंदी बोलने में भी पूरी तरह सक्षम है।

साल 1984 में जयाप्रदा के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘शराबी’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में उन्हें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। इसमें उनपर फिल्माया गीत ‘दे दे प्यार दे’ दर्शकों के बीच उन दिनों क्रेज बन गया था।

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