गणगौर पर्व खासतौर पर राजस्थान में मनाया जाता है. इस पर्व की मुख्य पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही की जाती है. यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं मनाती हैं. इस बार यह त्योहार 8 अप्रैल 2019 यानी सोमवार के दिन मनाया जा रहा है. यह व्रत होली के दूसरे दिन से शुरू होता है. लेकिन इसकी मुख्य पूजा होली के कुछ दिन बाद चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही की जाती है.
क्यों रखा जाता है गणगौर व्रत-
इसमें गुप्त रूप से सुहागिनें व्रत रखती हैं. यानि पति को बताए बिना ही महिलाएं उपवास रखती हैं. अविवाहित कन्याएं भी मनोवांछित वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं और गणगौर पूजा करती हैं. मान्यता है कि गणगौर व्रत और पूजा करने से सुहाग की रक्षा होती है और पति धनी होते हैं.
गणगौर व्रत और पूजा विधि-
इस पर्व के ईष्ट महादेव और मां पार्वती हैं, जो पूजा व उपवास करने पर सौभाग्य का वरदान देते हैं.
सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं, कथा सुनती हैं, नाचते-गाते खुशी से पूजा-पाठ कर इस पर्व को मनाती हैं.
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोए जाते हैं.
जवारों की भगवान शिव यानि ईसर और माता पार्वती यानि गौर के रूप में पूजा की जाती है.
जब तक इनका विसर्जन नहीं होता है तब तक विधिवत गौरी जी पूजा कर उन्हें भोग लगाया जाता है.
सुहाग की निशानियों का पूजन कर गौरी जी को अर्पित करना चाहिए.
कथा श्रवण के पश्चात माता पार्वती यानि गौरी जी पर अर्पित किए सिंदूर से महिलाओं को अपनी मांग भरनी चाहिए.
अविवाहित कन्याओं को गौरी जी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.
उन्हें सजा-धजा कर पालने में बैठाकर नाचते गाते शोभायात्रा निकालते हुए विसर्जित करें.
उपवास भी विसर्जन के बाद इसी दिन शाम को खोला जाता है.
मान्यता है कि गौरी जी स्थापना जहां होती है वह उनका मायका होता है और जहां विसर्जन किया जाता है वह ससुराल