शहडोल संसदीय सीट पर चुनाव दिलचस्प है, क्योंकि यहां भाजपा-कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी दलबदल कर मैदान में उतरे हैं। भाजपा से हिमाद्रि सिंह (कांग्रेस छोड़कर आईं) और कांग्रेस से प्रमिला सिंह (भाजपा छोड़कर आईं)। अब बात मुद्दे की। शहडोल सीट प्रदेश में सर्वाधिक वन भूमि वाला क्षेत्र है, लेकिन चुनाव से इस विषय का लेना-देना नहीं, क्योंकि यहां बेरोजगारी, गरीबी, चिकित्सा सुविधाओं का अभाव जैसे मुद्दे स्थानीय जनता की जुबां से गायब हैं। चुनाव में बहस सिर्फ नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी तक सीमित है। मोदी राष्ट्रवादी मुद्दे के कारण, तो राहुल 72 हजार रु. की न्याय योजना के कारण। रेडियो और लाउड स्पीकरों पर इसी की गूंज सबसे ज्यादा है। टेंशन है तो भाजपा को, वो भी अंतर्कलह की। उमरिया-बांधवगढ़ के प्रभावी नेता सांसद ज्ञानसिंह टिकट काटे जाने से नाराज हैं। शुक्रवार को शिवराज सिंह चौहान यहां सभा के लिए आए थे, लेकिन ज्ञान सिंह उनसे नहीं मिले। प्रमिला के पति अमरपाल सिंह आईएएस अधिकारी हैं, जो लंबे समय तक इसी इलाके में कई अहम पदों पर भी रहे।
छत्तीसगढ़ से सटी यह लोकसभा सीट अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिलों को मिलाकर बनती हैं। कटनी जिले की बड़वारा विधानसभा सीट भी इसी लोकसभा सीट का हिस्सा है। बारटोला गांव से यहां महुआ बेचने आए तेजा नायक कहते हैं कि कांग्रेस के जमाने में खप्पर वाला घर होता था, लेकिन मोदिया ( मोदी) ने पक्का घर बनवा दिया है। धाक वाला आदमी है भई, इसलिए कौन उम्मीदवार है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं, मोदी को वोट देंगे।अमरकंटक मार्ग पर बसे जमुड़ी गांव के 45 साल के इकबाल हुसैन कहते हैं कि उनका नाम वोटरलिस्ट को छोड़कर किसी सरकारी फायदे की योजना में आज तक नहीं लिखा जा सका है। जैसा राज कांग्रेस का था, वैसा ही भाजपा का है। उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया।
शहडोल क्षेत्र के लोग लंबे समय से नागपुर के लिए ट्रेन चलाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कई सांसदों और सरकारों ने वादे किए, जो आज तक पूरे नहीं हुए। इसी तरह नर्मदा और सोन नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक को विश्व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का वादा भी दशकों पुराना हो चला है। यहां गंदगी, सैलानियों के लिए सुविधाओं का अभाव जैसी बुनियादी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। अमरकंटक शहर में पेयजल संकट बड़ी समस्या है। तस्वीर अमरकंटक की ही है।
1952 व 1957 के चुनावों में यहां से दो सांसद चुने जाते थे, एक आरक्षित वर्ग से और एक सामान्य वर्ग से। 1962 से यह सीट स्थाई रूप से अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हो गई। वो इसलिए क्योंकि यहां की कुल 48% आबादी आदिवासी है। तब से अब तक 16 चुनावों में गोंड जाति का ही सांसद बना है। प्रमिला और हिमाद्री दोनों ही गोंड जाति से ताल्लुक रखती हैं। 32 साल की हिमाद्री के पिता स्व. दलबीर सिंह 3 बार और उनकी मां राजेश नंदिनी सिंह एक बार यहां से सांसद रही हैं। मौजूदा सांसद ज्ञानसिंह भी 3 बार यहां से सांसद चुने गए हैं। दलपत सिंह परस्ते सर्वाधिक 5 बार सांसद बने। 2016 में उनकी मौत के बाद यहां उपचुनाव हुआ था, जिसमें ज्ञानसिंह जीते और हिमाद्री हार गईं थीं।