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आज से शुरू हुई चारधाम यात्रा जानिए बद्रीनाथ की यह सबसे रोचक कथा…

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आप सभी को बता दें कि आज से उत्‍तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है. वहीं आज गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे और उसके बाद 9 मई को केदारनाथ और 10 मई को बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे. इसी के साथ कहा गया है कि चारों धामों का अपना-अपना पौराणिक महत्‍व बताया गया है और इन्‍हीं में से एक ब्रदीनाथ भी है. जी हाँ, बद्रीनाथ के विषय में एक रोचक कथा प्रचलित है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. कहा जाता है पहले यह शिव की भूमि थी और बाद में यह श्री हरि विष्‍णु का निवास स्‍थान बन गया. वैसे आपको यह जानने के बाद हैरानी होगी कि यह कैसे हुआ…? आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा.

कथा – श्री विष्‍णु की इस भूमि में यानी कि बद्रीनाथ में पहले भगवान भोलेनाथ का निवास स्‍थान था. शिव यहां पर अपने परिवार के साथ वास करते थे. लेकिन एक दिन भगवान विष्‍णु जब ध्‍यान करने के लिए स्‍थान की खोज में थे तो उन्‍हें यह स्‍थान दिखाई दिया. यहां के वातावरण को देखकर वह मोहित हो गए. लेकिन वह जानते थे कि यह तो उनके आराध्‍य का निवास स्‍थान है. ऐसे में वह उस जगह पर कैसे निवास करते. तभी प्रभु के मन में लीला का विचार आया और उन्‍होंने एक बालक का रूप लेकर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में मां पार्वती की नजर उनपर पड़ी तो वह बालक को चुप कराने का प्रयास करने लगीं.

लेकिन वह तो चुप ही नहीं हो रहा था. इसके बाद माता उसे लेकर जैसे ही भीतर प्रवेश करने लगी भोलेनाथ समझ गए कि यह तो श्री हरि हैं. उन्‍होंने मां पार्वती से कहा कि बालक को छोड़ दें वह अपने आप ही चला जाएगा. लेकिन मां नहीं मानी और उसे सुलाने के लिए भीतर लेकर चली गईं. जब बालक सो गया तो मां पार्वती बाहर आ गईं. इसके बाद शुरू हुई विष्‍णु की एक और लीला. उन्‍होंने भीतर से दरवाजे को बंद कर लिया और जब भोलेनाथ लौटे तो भगवान विष्‍णु ने कहा कि यह स्‍थान मुझे बहुत पसंद आ गया है.

अब आप यहां से केदारनाथ जाएं, मैं इसी स्‍थान पर अपने भक्‍तों को दर्शन दूंगा. इस तरह शिवभूमि भगवान विष्‍णु का धाम बद्रीनाथ कहलाई और भोले केदारनाथ में निवास करने लगे. मान्‍यता है कि एक बार देवी लक्ष्‍मी श्री हरि से रूठकर अपने मायके चली गईं. इसके बाद उन्‍हें मनाने के लिए भगवान विष्‍णु ने तप करना शुरू कर दिया. इसके बाद देवी लक्ष्‍मी की नाराजगी दूर हुई और वह भगवान को ढूंढ़ते हुए उसी स्‍थान पर पहुंची जहां वह तप में लीन थे. उन्‍होंने देखा कि श्री विष्‍णु तो बेर के पेड़ पर बैठकर तपस्‍या कर रहे हैं. इसके बाद मां लक्ष्‍मी ने भगवान विष्‍णु को ‘बद्रीनाथ’ का नाम दिया. इसके बाद विष्‍णुधाम बद्रीनाथ के नाम से जाना जाने लगा.

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