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बद्रीनाथ धाम से जुड़ी ये 7 बातें बहुत कम ही लोग जानते हैं…

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सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहलाने वाले बद्रीनाथ धाम के कपाट इस साल 10 मई 2019 को सुबह सवा चार बजे खोल दिए गए. जिसके बाद बाबा बद्रीविशाल के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी हुई हैं. कल यानी 19 मई को पीएम मोदी भी यहां भगवान विष्णु के दर्शन के लिए पहुंचे हुए थे. यह हिन्दुओं के चार धामों में से एक धाम है.जो अलकानंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है. यहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं. ऐसे में.     

बद्रीनाथ धाम से जुड़ी एक मान्यता है कि ‘जो आए बदरी, वो न आए ओदरी’. इसका मतलब जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन एक बार कर लेता है उसे दोबारा माता के गर्भ में नहीं प्रवेश करना पड़ता.बद्रीनाथ के बारे में कहा जाता है कि यहां पहले भगवान भोलेनाथ का निवास हुआ करता था लेकिन बाद में भगवान विष्णु ने इस स्थान को भगवान शिव से मांग लिया था.

बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच  बसा है. इन्हें नर नारायण पर्वत कहा जाता है. कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी.नर अपने अगले जन्म में अर्जुन तो नारायण श्री कृष्ण के रूप में पैदा हुए थे.मान्यता है कि केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक के दर्शन का खास महत्व होता है. ऐसा माना जाता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर देवता इस दीपक को जलाए रखते हैं.

बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं. कहा जाता है कि जब तर यह लोग रावल पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्माचर्य का पालन करना पड़ता है.इन लोगों को लिए स्त्रियों का स्पर्श वर्जित माना जाता है. केदारनाथ के कपाट खुलने की तिथि केदारनाथ के रावल के निर्देशन  में उखीमठ में पंडितों द्वारा तय की जाती है. इसमें सामान्य सुविधाओं के अलावा परंपराओं का ध्यान रखा जाता है. यही कारण है कि कई बार ऐसे भी मुहूर्त भी आए हैं जिससे बदरीनाथ के कपाट केदारनाथ से पहले खोले गए हैं. जबकि आमतौर पर केदारनाथ के कपाट पहले खोले जाते हैं

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