2019 के लिए वोटों की गिनती जारी है.में सबकी नज़र उत्तर प्रदेश पर थी. हर किसी के मन में यही सवाल था कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में मायावती और अखिलेश यादव की जोड़ी को हरा पाएंगे? अभी लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन शुरुआती रुझानों में बीजेपी बेहतरीन प्रदर्शन करती नज़र आ रही है. एग्जिट पोल में दिखाए गए आंकड़ें भी कुछ ऐसा ही दावा कर रहे थे. खासकर पूर्वांचल में, जहां पर मोदी लहर सबसे मज़बूत दिख रही है. और इसी क्षेत्र में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को प्रभारी बनाया था.
दरअसल, कैराना, गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव के नतीजों से ही तय हो गया था कि Uttar Pradesh में महागठबंधन ही बीजेपी को चुनौती दे सकता है. इसी मद्देनजर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आए. पुरानी दुश्मनी को दरकिनार कर मायावती और अखिलेश यादव ने हाथ मिलाने का फैसला किया. लेकिन Loksabha Election 2019 में हो रही वोटों की गिनती कुछ और कहानी बयां कर रही है. नरेंद्र मोदी एक बार फिर उत्तर प्रदेश की पहली पसंद बनते दिख रहे हैं. अब सवाल उठता है कि ऐसा कैसे हो गया? क्या उत्तर प्रदेश की जनता ने जातीय समीकरण से ऊपर उठकर वोट डाला है. शुरुआती रुझान तो यही कहते हैं. वैसे, ये रुझान हैं. इन पर आखिरी मत ना बनाएं.
एनडीटीवी इंडिया पर स्वारज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि हिंदू- मुस्लिम ध्रुवीकरण का काट सिर्फ जातीय समीकरण ही है, इस अवधारणा को सही नहीं माना जा सकता. अगर कोई पार्टी मंच से सिर्फ दलित, यादव और मुस्लिम के ही वोट मांगेगी तो इसके विपरीत नतीजे भी सामने आ सकते हैं. ऐसा होता दिख रहा है.
अभी सारे आंकड़ें सामने तो नहीं आएं हैं, लेकिन कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र माने जाने वाली प्रियंका गांधी का भी कुछ खास प्रभव नहीं दिख रहा है. शुरुआती रुझान में राहुल गांधी अपने पारिवरिक सीट अमेठी से पीछे चल रहे हैं. एक बार तो रायबरेली से सोनिया गांधी भी पीछे चली गईं. यानी Election Results 2019 में कांग्रेस के खुश होने की कोई वज़ह नहीं दिखती है.
खबर लिखे जाने तक भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में 55 से ज़्यादा सीटों पर बढ़त बनाई हुई थी. यह पिछले लोकसभा चुनाव में जीती गई सीटों की तुलना में कम है, लेकिन पार्टी के अंदरखाने में भी Loksabha Elections 2019 में 50 के आसपास ही सीटें जीतने की चर्चा थी. अगर ये आकंड़ें नतीजे में तब्दील होते हैं. तो मान लिया जाए कि नरेंद्र मोदी का काट ना तो जातीय समीकरण के आधार पर बने सपा-बसपा गठबंधन के पास है. और ना ही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जुगलबंदी के.ज्ञात हो कि यह लेख शुरुआती रुझानों पर आधारित हैं. सीटों की स्थिति बदल सकती है. लेकिन इतना तय दिख रहा है कि महागठबंधन या कांग्रेस को अभी उत्तर प्रदेश से अच्छी खबर नहीं मिल रही है