दक्षिण अफ्रीका ने नस्लभेद के कारण लगे प्रतिबंध के बाद 1992 में पहली बार वर्ल्ड कप खेला। टीम की शुरुआत अच्छी रही। पहले मैच में दक्षिण अफ्रीका ने ताकतवर ऑस्ट्रेलिया को 9 विकेट से हराया। इसके बाद वेस्टइंडीज, पाकिस्तान, जिम्बाब्वे और भारत को भी हराया। सेमीफाइनल में अफ्रीका मुकाबला इंग्लैंड से हुआ।
मैच में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी की। बारिश की वजह से मैच 45 ओवर का हो गया था। ग्रीम हिक ने 90 गेंद पर 83 रन की पारी खेल स्कोर 45 ओवर में 6 विकेट के नुकसान पर 252 रन तक पहुंचा दिया। उस जमाने में ये विनिंग टोटल माना जाता था। अफ्रीका के बल्लेबाजों ने छोटी-छोटी मगर उपयोगी पारियां खेलीं और टीम को मैच में वापस लाए।
ओपनर एंड्रयू हडसन ने 52 गेंद पर 46 रन बनाकर टीम को अच्छी शुरुआत दी। इसके बाद एड्रियन कूपर ने 36, हेंसी क्रोन्जे ने 24 और जोंटी रोड्स ने 38 गेंद पर 43 रन बनाए। ब्रायन मैकमिलन (21*) और डेविड रिचर्डसन (13) ने भी 26* रन जोड़े। अफ्रीका का स्कोर 42.5 ओवर में 6 विकेट पर 231 रन था। ब्रायन और रिचर्डसन विकेट पर थे। टीम को जीत के लिए 13 गेंद पर 22 रन चाहिए थे। तभी एक बार फिर जोरदार बारिश आ गई।
कुछ देर बाद बारिश रुकी तो दक्षिण अफ्रीका के सामने रिवाइज्ड टारगेट रखा गया, जिसे देखकर विपक्षी टीम तक हैरान रह गई। मैच रुकने से पहले अफ्रीका को 13 गेंद पर 22 रन चाहिए थे, तो मैच वापस शुरू होने पर उन्हें 1 गेंद पर 21 रन का लक्ष्य दे दिया गया। उस पर भी स्कोरबोर्ड ने गलती कर दी और 1 गेंद पर 22 रन का लक्ष्य दिखा दिया। नए टारगेट की गणित से सभी हैरान थे। आखिर इस गेंद पर एक रन बना और अफ्रीका 19 रन से हारकर दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से वर्ल्ड कप से बाहर हो गई। इसके बाद ही आईसीसी ने डकवर्थ-लुइस सिस्टम तैयार किया।