देश की सबसे बड़ी पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए आज बड़े इम्तिहान का दिन है. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है. ऐसा सवाल जब भी पार्टी के सामने आया है हमेशा गांधी परिवार ने आगे बढ़कर कमान संभाली है. लेकिन इस बार सवाल गांधी परिवार को लेकर ही खड़ा हो गया है. बीते साल जब गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान ही राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था तो ऐसा लग रहा था कि वह पार्टी को ‘खोया गौरव’ वापस दिला देंगे. वह भाषणों में पीएम मोदी पर सीधे हमला कर रहे थे. केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना में कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं था. उसके बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार बनी और ऐसा लगा कि राहुल गांधी ने इस बार लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करने वाले हैं.
लेकिन पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति को वह समझ नहीं सके. दरअसल यहां गलती सिर्फ राहुल गांधी की नहीं थी, उनके रणनीतिकार या सलाहकार भी अपना काम ठीक से नहीं कर पाए.गुजरात में भले ही कांग्रेस सरकार न बना पाई हो लेकिन वहां मिले समर्थन को भी कांग्रेस संभालकर नहीं रख पाई. इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी सरकार बनाने के बाद कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल को कांग्रेस बचाए न रख सकी है. दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी विवाद हुआ. इसके बाद पार्टी दो धड़ों में बंटती नजर आई. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के बीच मनमुटाव की खबरें थीं. वहीं राजस्थान में भी सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के बीच सब कुछ ठीक नहीं था.
विधानसभा चुनाव के पहले माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया तो राजस्थान में सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे. दूसरी ओर कमलनाथ और अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री बनने के बाद किया क्या, तो पहला जवाब यही है कि दोनों अपने-अपने बेटों की राजनीति में स्थापित करने में जुट गए. कमलनाथ ने अपने बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा से लोकसभा का टिकट दिलाया तो राजस्थान में अशोक गहलोत ने अपने बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर से टिकट दिलाया.
सवाल इस बात का है इन सबके बीच अगर राहुल गांधी अगर कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हैं तो पार्टी की बागडोर कौन संभालेगा. सोनिया गांधी अपनी उम्र और सेहत के चलते दोबारा कमान शायद ही संभालें. प्रियंका गांधी वाड्रा इस चुनाव में बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई हैं और उनको अध्यक्ष बनाना अच्छा संदेश नहीं जाएगा. दूसरी ओर गांधी परिवार से अलग बात करें तो पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह पर नजर टिकती है. लेकिन उनकी उम्र अब इतनी नहीं है कि वह पूरे देश का दौरा कर पार्टी के कार्यकर्ताओं में जान फूंक सकें. एक और वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी चुनाव हार गए हैं और उनका कोई व्यापक जनाधार भी नही है. बात करें युवा नेता की तो सचिन पायलट का राजस्थान में जनाधार जरूर है लेकिन उनका अपनी ही पार्टी के अंदर विरोध है. राजस्थान में पायलट और अशोक गहलोत में बिलकुल पटरी नहीं खाती है. यही हालत मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ है जो गुना से चुनाव हार गए हैं. उनका भी सीएम कमलनाथ से मनमुटाव जगजाहिर है.
इसके अलावा तिरुवनंतपुरम से तीसरी बार सांसद चुने गए शशि थरूर का अंदाज पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है क्योंकि वह बेबाक और स्वतंत्र राय के लिए जाते हैं. वह बीजेपी की नीतियों के विरोध के साथ-साथ पीएम मोदी की तारीफ कर डालते हैं. इन नेताओं के अलावा कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम भी वरिष्ठ नेताओं में आते हैं लेकिन इनका कोई व्यापक जनाधार न होने के चलते पार्टी शायद ही इन पर दांव लगाए. इसके अलावा एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद जैसे भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन सवाल इस बात का है क्या ये नेता पूरे देश में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जान फूंक पाएंगे.