प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बनारस से चुनाव जीतने के लिए यूं तो उनका चेहरा ही काफी था. फिर भी आक्रामक इलेक्शन कैंपेनिंग को जमीन पर उतारने के लिए उन्होंने गुजरात के उस नेता पर भरोसा जताया, जो एक बार उनसे मतभेद के कारण बीजेपी को ही अलविदा कह गया था. बात 2007 की है, जब गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. इस बीच भावनगर से दो बार के विधायक सुनील ओझा ने अचानक पार्टी छोड़कर सबको चौंका दिया. इसके पीछे तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी से मतभेद की बातें उभरकर सामने आईं.
बीजेपी छोड़ने के बाद उन्होंने निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़ा मगर हार गए. संगठन क्षमता में माहिर ओझा की फिर 2011 में बीजेपी में घर वापसी हुई. इसी के साथ कल के बागी ओझा, फिर पीएम मोदी के सबसे खास और भरोसेमंद नेताओं में से एक हो गए. यही वजह है कि घर वापसी करने वाले सुनील ओझा को नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बाद में उत्तर प्रदेश का प्रदेश सह प्रभारी बनाया. इस हैसियत से सुनील ओझा 2014 से लेकर 2019 के लोकभा चुनाव में मोदी की जीत के सूत्रधार रहे हैं. हालांकि से बात में ओझा इस बात से इनकार करते हैं कि पीएम मोदी की बनारस से जीत में उनका किसी तरह का योगदान हैं या फिर वे सूत्रधार रहे हैं. वह कहते हैं-“मोदी के नाम पर ही तो जनता वोट देती है, मैं तो बस एक सामान्य कार्यकर्ता भर हूं.”
90 के दशक में अयोध्या मूवमेंट से जुड़ाव रखने वाले सुनील ओझा मूलतः विश्व हिंदू परिषद काडर से आते हैं. गुजरात में हिंदुत्ववादी राजनीति के प्रतीक चेहरों में उनकी गिनती होती है. 2007 में मतभेद भले उभरकर सामने आए हों, मगर उनकी सांगठनिक क्षमता को पीएम मोदी बखूबी पहचानते रहे. यही वजह है कि 2011 में ओझा की बीजेपी में वापसी के बाद फिर मोदी-शाह ने उत्तर-प्रदेश जैसे बड़े सूबे में सह प्रभारी जैसी जिम्मेदारी देने के साथ बनारस की देखरेख भी उन्हीं के हवाले कर दी.
सुनील ओझा के नेतृत्व में गुजरात की एक पूरी टीम बनारस में इलेक्शन कैंपेनिंग करने में जुटी रही. इसमें गुजरात के ही परिंदु भगत ऊर्फ काकू भाई सहित इलेक्शन कैंपेनिंग के माहिर अन्य कई खिलाड़ी शामिल रहे. बेशक मोदी को चुनाव जीतने के लिए उनका चेहरा ही काफी रहा हो, मगर पीएम के संसदीय क्षेत्र में सरकार की नीतियों को जनता तक ले जाने और इलेक्शन एजेंडा को सेट करने के पूरे प्लान को जमीन पर उतारने में सुनील ओझा का खासा योगदान रहा.
बनारस में चुनाव संचालन समिति गठित थी. इसमें संगठन मंत्री रत्नाकर, प्रदेश सरकार में मंत्री आशुतोष टंडन, पीएम मोदी के इलेक्शन एजेंट विद्यासागर राय प्रमुख तौर पर शामिल रहे. जीत के बाद जिला मजिस्ट्रेट से पीएम मोदी के प्रतिनिधि विद्यासगर राय ने ही सर्टिफिकेट भी हासिल किया था. बाद में यह सर्टिफिकेट नई दिल्ली में पीएम मोदी को कई नेताओं के साथ राय ने भेंट किया था. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की कैंपेनिंग में एमएलसी लक्ष्मण आचार्य, राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी ने भी अहम भूमिका निभाई.
लोकसभा चुनाव के दौरान खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जहां चार दिनों तक ठहरे रहे, वहीं केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, जेपी नड्डा सहित केंद्र और प्रदेश के एक दर्जन से अधिक मंत्री यहां डेरा डाले रहे. पीयूष गोयल उन केंद्रीय मंत्रियों में शामिल हैं, जो पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी पीयूष गोयल ने बनारस में कैंप किया था.