बहुचर्चित सोहाल-द्राभला आईपीएच घोटाले के सभी आठों आरोपी कोर्ट से बरी हो गए हैं। विजिलेंस ब्यूरो लाखों के इस कथित घोटाले में आरोपी पांच अधिकारियों और तीन ठेकेदारों पर आरोप सिद्ध नहीं कर सका। विशेष न्यायाधीश (वन) की कोर्ट ने तत्कालीन अधीक्षण अभियंता एसके सिंघल, अधिशासी अभियंता सतपाल लोहिया, सहायक अभियंता अशोक शर्मा, कनिष्ठ अभियंता गुरचरण भरमोटा एवं प्रकाश चंद के अलावा ठेकेदार महेश पुरी, संजीव ठाकुर और कमलेश पुरी को बरी कर दिया है। इनमें अशोक शर्मा का देहांत हो चुका है। विजिलेंस ने इनके खिलाफ अपने शिमला थाने में आईपीसी की धारा 420, 465, 467, 468, 471 और 120बी तथा भ्रष्टाचार रोधी अधिनियम की धारा 13(1)(डी) और 13(2) के तहत मामला दर्ज किया था।
धूमल सरकार में मार्च, 2008 को विजिलेंस के जांच अधिकारी नेशिमला थाने में केस दर्ज करने के लिए एक रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में आरोपियों पर दो तरह के आरोप थे। इनमें एक आईपीएच विभाग के पंपिंग स्टेशनों में मशीनरी की बिक्री और मरम्मत में घपले से संबंधित और दूसरा सोहाल-द्राभला सड़क निर्माण में घोटाले का था। नौटी खड्ड से शिमला के लिए लिफ्ट वाटर सप्लाई की करोड़ों की स्कीम के काम के लिए अधिशासी अभियंता सतपाल लोहिया जिम्मेवार थे। लोहिया पर आरोप रहा कि उन्होंने काम शुरू करने को कंपीटेंट अथॉरिटी से मंजूरी नहीं ली।
जेई गुरचरण सिंह भरमोटा और प्रकाश चंद पर झूठी एंट्री करने, अशोक शर्मा पर इसे मिलीभगत से सत्यापित करने और लोहिया पर झूठे बिल पास करने के आरोप थे, जिससे सरकारी राजस्व को करीब 80 लाख का नुकसान हुआ। तीन फर्मों को इसका लाभ देने का भी आरोप रहा। मशीनरी की खरीद-फरोख्त के अलावा सोहाल-द्राभला सड़क चौड़ा करने में भी घोटाले के आरोप थे।कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि मामले में आरोपियों पर संदेह उजागर किया, लेकिन यह लीगल प्रूफ का रूप नहीं ले सका। अभियोजन की ओर से बताई और रिकॉर्ड से जोड़ी परिस्थितियां पूर्ण नहीं हैं। इससे आरोपियों पर दोष सिद्ध नहीं होते हैं।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में अभियोजन पक्ष धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक प्रवृत्ति के आरोप साबित नहीं कर पाया है। जिस तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर विजिलेंस ने जांच शुरू की। उसका रिकॉर्ड भी अपूर्ण बताया।
इस मामले में कांग्रेस सरकार में रहे मंत्री को भी लपेटने की तैयारी थी। माना जा रहा था कि अधिकारियों ने इस घपले को राजनीतिक शह में अंजाम दिया। तत्कालीन धूमल सरकार इस मामले को उससे पिछली वीरभद्र सरकार के खिलाफ लगातार मुद्दा भी बनाती रही, मगर पूर्व मंत्री और किसी नेता के खिलाफ सुबूत नहीं जुटाए जा सके। कुछ आरोपियों की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पूर्व मंत्री से हुई बातचीत की एक सीडी भी इस मामले में खूब वायरल हुई। चर्चा यह रही कि इस सीडी को गुप्तचर महकमे ने तैयार किया था।