Home धर्म/ज्योतिष वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की कथा…

वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की कथा…

40
0
SHARE

आप सभी को बता दें कि हिंदू धर्म में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में दिन मनाए जाने वाले वट सावित्री पूर्णिमा व्रत का काफी धार्मिक महत्व है. ऐसे में आज 16 जून रविवार को यह व्रत मनाया जा रहा है. आज के दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र, बच्चों की तरक्की, उम्र और घर की खुशहाली के लिए ये व्रत करती हैं. ऐसे में आज हम बताने जा रहे हैं आज के दिन व्रत रखने कि कथा.

राजा अश्वपति निःसंतान थे. संतान की प्राप्ति के लिए उन्होंने पत्नी के साथ पूरे विधि-विधान सहित देवी सावित्री की पूजा-अर्चना और उपवास किया. देवी सावित्री की कृपा से उचित समय पर रानी ने एक बहुत सुंदर कन्या को जन्म दिया. राजा अश्वपति ने मां सावित्री की कृपा से पैदा हुई बच्ची को ‘सावित्री’ नाम दिया. सावित्री जब विवाह योग्य हुई तो राजा अश्वपति ने उसे अपने लिए वर खोज लाने का आदेश दिया. पिता का आदेश मानकर सावित्री ने वर की तलाश की और सत्यवान को अपने भावी जीवनसाथी के रूप में चुना. सावित्री ने जब घर वापस आकर अपने चुनाव की बात पिता को बताई. ठीक उसी समय देवर्षि नारद वहां प्रकट हुए

और उन्होंने जानकारी दी कि महाराज द्युमत्सेन का पुत्र सत्यवान की आयु काफी कम है. शादी के 12 साल के बाद ही उसकी मौत हो जाएगी . इसपर पिता अश्वपति ने सावित्री को काफी समझाया बुझाया लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग रही. सही समय पर सावित्री और सत्यवान का विवाह संपन्न हुआ. विवाह के बाद सावित्री पिता का महल छोड़कर अपने सास, ससुर और पति सत्यवान के साथ जंगल में जाकर रहने लगी. दरअसल, सत्यवान का राजपाट किसी राजा ने युद्ध में उससे जीत लिया था. सावित्री ने विवाह के बाद सत्यवान की लंबी आयु के लिए उपवास रखना शुरू कर दिया.

जब सत्यवान की मृत्यु का समय आ गया और यमराज उसे स्वर्गलोक ले जाने लगे तो देवी सावित्री भी उसके पीछे-पीछे हाथ जोड़कर चलने लगीं. इसपर यमराज ने उन्हें वापस लौट जाने को कहा. लेकिन देवी ने उनकी बात नहीं मानी. यमराज ने जब पलट कर देखा तो पता चला कि देवी सावित्री उनके पीछे-पीछे चली आ रही हैं. इसपर उन्होंने सावित्री से पूछा बताओ क्या चाहती हो. इसपर सावित्री ने कहा कि मुझे सौभाग्यवती होने और 100 पुत्रों का वरदान दीजिए. मेरे पुत्र राजसिंहासन पर बैठे अपने बाबा की गोद में खेलें और मेरे ससुर उन्हें देखकर प्रसन्न हों. यमराज ने कहा तथास्तु.अपने इस एक वरदान में सावित्री ने न केवल अपने ससुर का राजपाट, बल्कि नेत्र-ज्योति समेत सदा सौभाग्यशाली होने का आशीर्वाद भी पा लिया. इस आशीर्वाद की वजह से ही यमराज को मजबूरन सत्यवान के प्राण वापस लौटाने पड़े. तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, परिवार की सुख समृद्धि और संतान की कामना के साथ पूरे विधि-विधान से ये व्रत रखती हैं और वट सावित्री व्रत की कथा सुनती हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here