मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर 27 फीसदी करने के मामले में सोमवार को सुनवाई की। राज्य सरकार की ओर से एक आवेदन पेश कर बताया गया कि इसी अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है, जिसमें सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।
राज्य सरकार ने मांग की कि मामले पर सुनवाई बढ़ा दी जाए। एक्टिंग चीफ जस्टिस आरएस झा एवं जस्टिस विजय शुक्ला की खंडपीठ ने अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की है। साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी है कि अगर राज्य सरकार उक्त अध्यादेश के पालन में कोई कार्रवाई करता है तो स्टे के लिए आवेदन पेश कर सकते हैं।
यूथ फॉर इक्वेलिटी संस्था और नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे ने याचिका दायर कर बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में स्पष्ट कहा है कि किसी भी स्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। मध्यप्रदेश में पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत 50 प्रतिशत आरक्षण लागू था।
इसमें 20 प्रतिशत एसटी, 16 प्रतिशत एससी और 14 प्रतिशत ओबीसी को आरक्षण का प्रावधान था। राज्य सरकार ने 8 मार्च 2019 को एक अध्यादेश जारी कर ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने दलील दी कि ओबीसी का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने से प्रदेश की शासकीय नौकरियों में आरक्षण की कुल सीमा बढक़र 63 प्रतिशत हो गई है, जोकि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है।