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आर्टिकल 15′ देखने के बाद ऐसा लगता है कि सचमुच हम कब तक सिर्फ बातें करते रहेंगे….

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कब तक हम पावर और सिस्टम के आगे दबते रहेंगे.अब बस बहुत हुआ ‘आर्टिकल 15’ हमारे संविधान में लिखी गई वह सच्चाई है जिसके अंतर्गत किसी भी वर्ग, जाति, लिंग या धर्म के व्यक्ति में किसी तरह का अंतर नहीं किया जाए. मगर क्या ऐसा हो रहा है? इसी ज्वलंत मुद्दे पर अनुभव सिन्हा की यह फिल्म बात करती है और हमारे सिस्टम को खंगालती है.

भेदभाव नहीं करने की नसीहत देने वाले संविधान के ‘आर्टिकल 15′ को आधार बनाकर बनाई गई ये बेहद प्रभावशाली फिल्म ऐसे कई सवालों से आपके मन को बैचेन कर देगी और यही बैचेनी फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी के रूप में सामने आती है. अगर आप भी फिल्म देखने का मन बना रहें हैं तो जानें फिल्म से जुड़ी ये खास बातें…

आयुष्मान खुराना अब ऐसे कलाकार का दर्जा हासिल कर चुके हैं जिनके नाम पर फिल्म देखी जा सकती है. उन्होंने इस गंभीर मुद्दे को बड़े परदे पर बहुत ही संजीदगी से अपने अभिनय के जरिये दर्शाया है.’मुल्क’ के बाद अनुभव सिन्हा ने एकबार फिर समाज के एक ज़रूरी मुद्दे को कहानी के तौर पर कहना ज़रूरी समझा और युवा पीढ़ी को मद्देनज़र रखकर इसे उसी अंदाज में पेश है.सायानी गुप्ता, ईशा तलवार, मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा और मोहम्मद जीशान, सभी ने बेहद महत्वपुर्ण भूमिकाएं निभायीं हैं.

इवान मुलिगन का कैमरा ग्रामीण ज़िंदगी की बेबसी और वीराने को बख़ूबी कैप्चर करता है, तो वहीं यशा रामचंदानी की एडिटिंग और मंगेश धाकड़े का संगीत फिल्म को रोचकता को अपनी चरम पर ले जाने में कामयाब साबित होता है. फिल्म की शुरुआत उत्तर भारत के एक चर्चित लोक गीत से और अंत आज के हिप होपअंदाज में रैप गाने के जरिये किया गया जिसके बोल हैं … बातें बहुत हुई अब काम शुरू करें क्या?? अनुभव सिन्हा की ‘आर्टिकल 15’ यही सवाल उठाती है.

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