Home मध्य प्रदेश कांग्रेस संकट के साइड इफेक्ट: खतरे में 2 राज्यों की सरकारें…

कांग्रेस संकट के साइड इफेक्ट: खतरे में 2 राज्यों की सरकारें…

18
0
SHARE

यूं तो चुनावी हार के कारण कांग्रेस पहले से मुसीबत में थी, मगर राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद संकट और गहरा गया है. मुख्य विरोधी बीजेपी जहां लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद भी लगातार पार्टी के विस्तार में जुटी है. अध्यक्ष और कार्यवाहक अध्यक्ष जैसे डबल इंजन वाले नेतृत्व में 20 करोड़ सदस्यों को जोड़ने मैदान में उतर चुकी है. वहीं कांग्रेस कैंप में सन्नाटा है. कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष तो छोड़िए, जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां प्रदेश नेतृत्व को लेकर भी उहापोह है. पार्टी में जारी इस संकट का असर कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों पर भी पड़ा है, जहां गठबंधन से कांग्रेस की सरकार चल रही है. इसे कांग्रेस में नेतृत्व के संकट का साइड इफेक्ट माना जा रहा है.

हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं है. हाल में अशोक चव्हाण ने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था. हरियाणा और झारखंड में पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है. हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर ने बिना पार्टी नेतृत्व की मंजूरी के ही चुनाव योजना और प्रबंधन कमेटी बना दी.

जिस पर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने नाराजगी जताते हुए नेतृत्व परिवर्तन के संकेत दिए हैं. इसी तरह झारखंड में संगठन के लिहाज से उपाध्यक्ष और महासचिव जैसे अहम पद कई महीने से खाली चल रहे हैं. वहीं प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार को पार्टी के अंदर ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी पदाधिकारियों का एक धड़ा लगातार दिल्ली में उन्हें हटाने के लिए कैंप किए हुए है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि महज कुछ महीने बाद में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर इन राज्यों में कांग्रेस की तैयारियां कैसी हैं.

जहां कांग्रेस तीनों राज्यों में संगठन को लेकर जूझ रही है, वहीं बीजेपी विधानसभा चुनाव में भी 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने के मूड में है. तीनों राज्यों महाराष्ट्र, झारखंड व हरियाणा के विधानसभा चुनाव के मद्देजर बीजेपी खास एक्शन प्लान पर काम कर रही है. राज्यों के संगठन मंत्री बूथ लेवल की समीक्षा कर कार्यकर्ताओं को गतिशील बना रहे. तीनों राज्यों में छह जुलाई से जोर-शोर से सदस्यता अभियान भी चल रहा है. पांच साल की उपलब्धियों को जनता के बीच ले जाने के लिए पार्टी तमाम तरह के कार्यक्रमों का सहारा ले रही है. पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा तीनों राज्यों के संगठन से लगातार अपडेट लेकर उन्हें पीएम मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह के दिशा-निर्देशों को अमलीजामा पहनाने का निर्देश दे रहे हैं.

कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर संगठन में विभिन्न स्तर पर हुए कई इस्तीफों का असर उन राज्यों पर भी पड़ा है, जहां कांग्रेस गठबंधन के जरिए सरकार चला रही है. कर्नाटक में असंतुष्ट चल रहे 13 विधायकों के इस्तीफा देने के चलते कांग्रेस-जेडीएस सरकार संकट में है. अगर ये विधायक नहीं राजी हुए तो फिर सरकार गिर सकती है. इस्तीफा देने वाले विधायकों में 10 कांग्रेस और 3 जनता दल यूनाइटेड (जेडीएस) के हैं. फिलहाल, जो समीकरण बन रहे हैं उनमें बीजेपी बहुमत के आंकड़े से महज एक कदम दूर नजर आ रही है.

कर्नाटक मे 225 विधानसभा सदस्य हैं. इसमें 118 विधायक के समर्थन से कुमारस्वामी सरकार चल रही है. यह संख्या बहुमत के लिए जरूरी 113 से पांच ज्यादा थी.  इसमें कांग्रेस के 79 विधायक (विधानसभा अध्यक्ष सहित), जेडीएस के 37 और तीन अन्य विधायक शामिल रहे हैं. तीन अन्य विधायकों में एक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से, एक कर्नाटक प्रग्न्यवंथा जनता पार्टी (केपीजेपी) से और एक निर्दलीय विधायक है. विपक्ष में बैठी बीजेपी के पास 105 विधायक हैं. कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को समर्थन दे रहे 13 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं.

कर्नाटक ही नहीं मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार खतरे के निशान पर चल रही है. हाल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई कांग्रेस विधायकों के संपर्क में होने का दावा करते हुए कहा कि सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल सकती. इस बयान ने आने वाले वक्त में मध्य प्रदेश में नई सियासी तस्वीर उभरने के संकेत दिए हैं. सीटों की बात करें तो राज्य में विधानसभा की 230 सीटें हैं. पिछले साल दिसंबर में हुए चुनाव में भाजपा को 109 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं. वहीं बीएसपी और एसपी को एक-एक जबकि 4 सीटों पर निदर्लीय जीते. इन्हीं निर्दलीयों और सपा-बसपा विधायकों के सहारे कमलनाथ सरकार सत्ता में टिकी हुई है. अगर बीजेपी विधायकों को तोड़ने में सफल हुई तो फिर कमलनाथ सरकार भी संकट में घिर सकती है. कांग्रेस के कई नेता दबी जुबान से यह स्वीकार करते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में जारी संकट का असर प्रदेशों पर भी पड़ रहा है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here