अयोध्या विवाद पर चल रही मध्यस्थता प्रक्रिया के विफल रहने पर सुप्रीम कोर्ट 25 जुलाई से दोबारा मामले की सुनवाई शुरू कर देगा. मामले की जल्द सुनवाई की मांग करने वाली एक अर्जी पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है. कोर्ट ने मध्यस्थता कमिटी के अध्यक्ष जस्टिस कालीपुल्ला को अब तक हुई तरक्की पर रिपोर्ट देने के लिए कहा है. उनकी रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट सुनवाई के बारे में फैसला लेगा.
मामले के पक्षकार रहे स्वर्गीय गोपाल सिंह विशारद के बेटे की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि उनके पिता ने करीब 70 साल पहले मुकदमा दायर किया था. उनकी मृत्यु के बाद अब वो मुकदमा लड़ रहे हैं. खुद उनकी उम्र करीब 80 साल हो चुकी है. ऐसे में करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़े इस मामले को लटकाए रखना उचित नहीं है. उनकी तरफ से वरिष्ठ वकील के. परासरन ने दलील दी, “मध्यस्थता कमिटी के काम में कोई खास तरक्की नहीं हो रही है. इस प्रक्रिया से कोई हल निकलने की उम्मीद नहीं है. कमिटी की रिपोर्ट के लिए 15 अगस्त तक का इंतज़ार सिर्फ समय की बर्बादी साबित होगा. कोर्ट मध्यस्थता बंद कर दोबारा सुनवाई शुरू कर दे.”
परासरन की बातों का रामलला विराजमान के वकील रंजीत कुमार और निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने भी समर्थन किया. उनका भी कहना था जिस तरह से कमिटी काम कर रही है, उससे मामले का समाधान निकलने की उम्मीद नहीं है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अर्जी का विरोध किया. उन्होंने कोर्ट से कहा, “खुद आप ने कमिटी का गठन किया. कमिटी को काम के लिए 15 अगस्त तक का समय दिया. अब किसी एक पक्ष के बातचीत से संतुष्ट न होने पर पूरी प्रक्रिया रद्द नहीं की जा सकती. दूसरे पक्ष गंभीरता से हल का प्रयास कर रहे हैं. कोर्ट को इसकी इजाजत देनी चाहिए.”
5 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, “हमने आप सब की बातें सुन ली. लेकिन हम चाहते हैं कि हम कमिटी की भी बात सुनें. इसलिए हम मध्यस्थता कमिटी के अध्यक्ष जस्टिस कलिफुल्ला से आग्रह करते हैं कि वो 18 जुलाई तक हमें एक रिपोर्ट दें. अध्यक्ष हमें बताएं कि मध्यस्थता प्रक्रिया में क्या प्रगति हुई है. अगर जस्टिस कलिफुल्ला भी सहमत होंगे कि मध्यस्थता से हल निकाल पाना संभव नहीं, तो हम 25 जुलाई से मामले की सुनवाई शुरू कर देंगे.”
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जगह पर प्राचीन हिंदू मंदिर होने की बात स्वीकार की थी. लेकिन जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया था. दो तिहाई हिस्सा हिंदू पक्ष को मिला था. जबकि एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को. फैसले से असंतुष्ट सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. तब से मामला लंबित है. इस साल मार्च में कोर्ट ने विवाद को मध्यस्थता के जरिए हल करने का सुझाव दिया. इसके लिए 3 सदस्यों की एक कमिटी का गठन किया. शुरू में कमिटी को काम के लिए 8 हफ्ते का वक्त दिया गया था. लेकिन 10 मई को कोर्ट ने कमिटी के अध्यक्ष की रिपोर्ट को देखते हुए उसका कार्यकाल 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया था.