न भुगतान रसीदें मिलीं और न ही रिकॉर्ड में उपयोगिता प्रमाणपत्र मिले हैं। मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसों के आवंटन पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं। ज्यादातर मामले पिछली सरकार के कार्यकाल के हैं। इसका खुलासा ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है। स्थानीय लेखा विभाग ने मुख्यमंत्री कार्यालय और सामान्य प्रशासन विभाग से इसकी जांच करने की भी संस्तुति की है। मुख्यमंत्री राहत कोष का यह पैसा गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है।
एक अप्रैल 2014 से लेकर 31 मार्च 2018 तक के मामलों की लेखा परीक्षा रिपोर्ट से यह बात उजागर हुई है। स्थानीय लेखा परीक्षा विभाग के उपनिदेशक ने यह मामला उच्च अधिकारियों के ध्यान में लाया है। इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग के उप सचिव को भी एक पत्र लिखा है।इस रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न लोगों को आवंटित धनराशियों के बारे में उपलब्ध अभिलेखों का ऑडिट करने के बाद पाया गया है कि मुख्यमंत्री राहत कोष के विभिन्न उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए आवंटित या जारी इस राशि के बारे में भुगतान प्राप्ति रसीदें और उपयोगिता प्रमाणपत्र हासिल नहीं किए गए हैं। इसकी जांच संबंधित संस्था अपने स्तर पर कर सकती है।इसमें कहा गया है कि वास्तविक भुगतान प्राप्ति रसीदें और उपयोगिता प्रमाणपत्र प्राप्त किए जाने चाहिए। ऑडिट रिपोर्ट में ज्यादातर जिलों में डीसी की ओर से जिला राहत कोष से 50 फीसदी अंशदान जमा नहीं करने की बात भी उजागर हो चुकी है।
ऑडिट रिपोर्ट में मुख्यमंत्री राहत कोष से 31 मार्च 2018 को 23 लाख 55 हजार 193 रुपये को सावधि जमा में निवेश पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। अंकेक्षण में सावधि निवेश की पड़ताल करने पर पाया गया कि सावधि निवेश का आवश्यक रजिस्टर नहीं लगाया गया। इसके कारण यह जांच नहीं की जा सकी कि सावधि निवेश किस दर के लिए किस अवधि के लिए निवेशित किया गया।