आखिरी जत्थे में श्रीखंड महादेव की यात्रा पर रवाना हुए तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई है। तीनों की मौत ऑक्सीजन की कमी होने से बताई जा रही है। ये श्रद्धालु श्रीखंड महादेव के दर्शन कर आखिरी पड़ाव से लौट रहे थे। मृतकों में एक शिमला शहर जबकि दो दिल्ली के हैं। पुलिस और प्रशासन की टीम ने शव बेस कैंप सिंहगाड़ पहुंचा दिए हैं। सामुदायिक अस्पताल निरमंड में पोस्टमार्टम के बाद इन्हें परिजनों को सौंपा जाएगा। इस साल श्रीखंड यात्रा के दौरान चार श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है, जबकि पिछले नौ साल में 39 लोग जान गंवा चुके हैं।
पुलिस के अनुसार 25 जुलाई को श्रीखंड यात्रा का आखिरी जत्था रवाना हुआ। इनमें उपेंद्र सैनी (40) पुत्र जीवन सैनी निवासी खलीनी (शिमला), केवल नंद भगत (59) पुत्र गोपाल दत्त निवासी ए 577, चौखड़ी (वेस्ट दिल्ली) और आत्मा राम (66) पुत्र कांशा राम शर्मा निवासी चेतराम गली, मोजपुर शादरा (दिल्ली) भी शामिल थे। शनिवार रात 9:30 बजे तीनों की अलग-अलग जगह भीमवही, नैनसरोवर और कुंशा में मौत होने की सूचना है।उधर, एसडीएम आनी चेत सिंह ने बताया कि तीनों श्रद्धालुओं का बेस कैंप में 25 जुलाई को पंजीकरण हुआ था। श्रीखंड के दर्शन के बाद लौटते समय सांस लेने की दिक्कत होने से तीनों की मौत होने की आशंका है। उन्होंने बताया कि 25 जुलाई के बाद कोई जत्था यात्रा के लिए नहीं भेजा है। जो गए हैं उनके लौटने का इंतजार हो रहा है। यात्रा के दौरान कई ऐसे पड़ाव हैं, जहां ऑक्सीजन की कमी रहती है। चेकअप के बाद ही श्रद्धालुओं को भेजा जाता है।
बारिश, बर्फबारी और हादसों की आशंका के चलते 25 जुलाई को जिला प्रशासन ने इस बार 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर कैलाश की पवित्र यात्रा पर रोक लगा दी है। बता दें कि यह यात्रा हर साल पहली अगस्त से शुरू होती थी। इस बार भारी बर्फबारी के चलते अभी भी रास्ते बहाल नहीं हो सके हैं। ग्लेशियरों से होकर गुजरने वाला रास्ता खतरनाक है। हालांकि, इससे शिवभक्त मायूस भी हैं।पिछले वर्ष श्रीखंड यात्रा पर गए कुल 4 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। एक की हृदय गति रुकने और अन्य की ऑक्सीजन की कमी से जान गई थी। एसडीएम चेत सिंह ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि बिना मेडिकल चेकअप यात्रा पर न जाएं।
श्रीखंड की पौराणिक मान्यता है कि भस्मासुर राक्षस ने अपनी तपस्या से शिव से वरदान मांगा था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रखेगा, वह भस्म होगा। राक्षसी भाव होने के कारण उसने माता पार्वती से शादी करने की ठान ली। इसलिए भस्मापुर ने शिव के ऊपर हाथ रखकर उसे भस्म करने की योजना बनाई, लेकिन भगवान विष्णु ने उसकी मंशा को नष्ट किया। विष्णु ने माता पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए राजी किया। नृत्य के दौरान भस्मासुर ने अपने सिर पर ही हाथ रख लिया और भस्म हो गया। आज भी वहां की मिट्टी और पानी दूर से लाल दिखाई देते हैं।