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बकरीद पर क्या है कुर्बानी का नियम जानें शैतान को क्यों मारते हैं पत्थर..

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आज देशभर में ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईद-उल-जुहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है.ईद-उल-अजहा के मौके पर मुस्लिम धर्म में नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी भी दी जाती है. इस्लाम के अनुसार, मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते हैं. हालांकि इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है.आइए जानते हैं कि बकरीद पर आखिर क्यों दी जाती है कुर्बानी और कुर्बानी के गोश्त को पूरा क्‍यों नहीं अपने पास रखा जाता.

इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें. हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे. अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई. बता दें, हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी. जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया.

हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छूरी चला दी. लेकिन जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है. जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरूआत हुई.

इस्लाम में कुर्बानी के गोश्त को अकेला कोई परिवार अपने लिए नहीं रख सकता. कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. जिसका पहला हिस्सा गरीबों के लिए होता है. दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए होता है.

इस्लाम में हज यात्रा के आखिरी दिन कुर्बानी देने के बाद रमीजमारात पहुंच कर शैतान को पत्थर मारने की भी एक अनोखी परंपरा है. कहा जाता है कि यह परंपरा हजरत इब्राहिम से जुड़ी हुई है. माना जाता है कि जब हजरत इब्राहिम अल्लाह को अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए चले थे तो रास्ते में शैतान ने उन्हें बहकाने की कोशिश की थी. यही वजह है कि हजयात्री शैतान के प्रतीक उन तीन खंभों पर पत्थर की कंकडियां मारते हैं.

इस्लाम में कुर्बानी के नियम उस शख्स पर लागू होते हैं जिसकी हैसियत कुर्बानी देने की होती है. जो शख्स हैसियतमंद होते हुए भी अल्लाह की रजा में कुर्बानी नहीं करता है वो गुनाहगारों में शुमार होता है.

कुर्बानी के लिए जानवरों चुनते समय पर अलग-अलग हिस्से हैं. जहां बड़े जानवर ( भैंस ) पर सात हिस्से होते हैं तो वहीं बकरे जैसे छोटे जानवरों पर महज एक हिस्सा होता है. मतलब साफ है कि अगर कोई शख्स भैंस या ऊंट की कुर्बानी कराता है तो उसमें सात लोगों को शामिल किया जा सकता है. वहीं बकरे की कराता है तो वो सिर्फ एक शख्स के नाम पर होता है. इस्लाम में ऐसे जानवरों की कुर्बानी ही जायज मानी जाती है जो जानवर सेहतमंद होते हैं. अगर जानवर को किसी भी तरह की कोई बीमारी या तकलीफ हो तो अल्लाह ऐसे जानवर की कुर्बानी से राजी नहीं होता है.

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