भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई के लिए हिमाचल सरकार ने विजिलेंस के हाथ कुछ हद तक खोल दिए हैं। अब किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े हर मामले की जांच शुरू करने से पहले विजिलेंस को सरकार से अनुमति नहीं लेनी होगी। सरकार के निर्देश पर विजिलेंस ने संशोधित नियमावली लागू कर दी है।
केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन के बाद विजिलेंस की ओर से की जाने वाली प्रारंभिक जांच अथवा जांच के लिए धारा 17-ए के तहत सरकार से अनुमति लेने के संबंध में प्रदेश सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। अब अगर किसी मामले की जांच के दौरान सरकार के अधिकारी या कर्मचारी का नाम व भूमिका स्पष्ट है और आरोपी मुलाजिम ने अपने आधिकारिक दायित्व के निर्वहन के दौरान किसी सिफारिश या निर्णय लिया है तो ही उन मामलों में जांच के लिए विजिलेंस सरकार से अनुमति मांगेगी।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि अनुमति मांगने के लिए तभी फाइल भेजी जाएगी, जब यह दो शर्तें पूरी हो रही हैं। प्रधान सचिव विजिलेंस संजय कुंडू ने इसकी पुष्टि की है। सरकार के निर्देश के बाद प्रदेश विजिलेंस ने एचपी विजिलेंस मैनुअल में बदलाव कर इसके दूसरे चैप्टर के पैरा 4.1 में 4.1-ए जोड़ कर बदलाव को लागू कर दिया है।दरअसल, केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में बदलाव कर नई व्यवस्था की थी कि सरकारी मुलाजिम के खिलाफ जांच के लिए उस अफसर के विभागाध्यक्ष से पीसी एक्ट की धारा 17 ए के तहत अनुमति लेनी जरूरी होगी।
इसके बाद विजिलेंस ने वर्तमान में चल रहे मामलों के अलावा किसी भी तरह की शिकायत पर जांच या प्रारंभिक छानबीन के लिए सरकार से अनुमति मांगना शुरू कर दिया। चूंकि, कार्रवाई न होने पर सरकार का संरक्षण मिलने जैसी तस्वीर उभरने लगी थी। बड़ी संख्या में अनुमतियां विभिन्न विभागों में लंबित थीं। इसी के चलते सरकार ने यह बदलाव किया है।