Home Bhopal Special 7 कंपनियों का पोषण आहार सप्लाई का ठेका चार माह बढ़ाया..

7 कंपनियों का पोषण आहार सप्लाई का ठेका चार माह बढ़ाया..

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भोपाल आंगनबाड़ियों में पोषण आहार (टेक होम राशन या टीएचआर) की सप्लाई कर रही सात कंपनियों का ठेका राज्य सरकार ने चार माह और बढ़ा दिया है। कैबिनेट ने बुधवार को इसे मंजूरी दे दी। ऐसा तीसरी बार हुआ है। जबकि इन कंपनियों को शॉर्ट टर्म टेंडर के तहत टीएचआर सप्लाई का काम कुछ महीने के लिए दिया गया था, लेकिन इसे चलते-चलते 18 महीने हो गए। अब दिसंबर 2019 तक यही कंपनियां सप्लाई देंगी।

हैरानी की बात है कि मार्च 2018 को कैबिनेट ने यह निर्णय लिया था कि अक्टूबर 2018 तक नई व्यवस्था तैयार करके महिला स्व सहायता समूहों के फेडरेशन को पूरी तरह पोषण आहार सप्लाई का काम दे दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधीन मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को यह काम सौंपा गया था कि वह नई व्यवस्था खड़ी करे। प्रदेश के सात जगहों पर नए प्लांट लगाए और मप्र की जरूरत के पोषण आहार का उत्पादन करे, लेकिन मिशन अब तक सिर्फ कुल जरूरत का एक तिहाई ही उत्पादन कर पा रही है।

पूरी जरूरत का 12 हजार टन पोषण आहार वह दिसंबर-जनवरी तक ही दे पाएगी। साफ है कि तब तक सात कंपनियों से ही पोषण आहार की सप्लाई चलती रहेगी। यहां बता दें कि आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 माह से तीन वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, धात्री माताओं और किशोरी बालिकाओं (11 से 14 वर्ष तक शाला त्यागी) को इसकी सप्लाई होती है।

पोषण आहार सप्लाई का सालाना कारोबार करीब 800 करोड़ रुपए का है। राज्य सरकार के एमपी एग्रो फूड के अलावा निजी क्षेत्र की तीन कंपनियां सप्लाई का काम करती रही हैं । 2017 में जब विवाद हुआ तो यह काम महिला स्व सहायता समूहों को देने की बात हुई। मार्च 2018 में कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी। कहा गया कि अक्टूबर तक यह काम इन समूहों के पास होगा, लेकिन एेसा नहीं हुआ। अभी भी हर माह करीब 60 करोड़ रुपए के पोषाहार की सप्लाई का काम निजी क्षेत्र की सात कंपनियों के पास है।

मार्च 2018 से पहले तक निजी क्षेत्र की तीन कंपनियां एमपी एग्रो न्यूट्री फूड प्रालि, एमपी एग्रोटॉनिक्स लिमिटेड और एमपी एग्रो फूड इंडस्ट्रीज ही पोषण आहार की सप्लाई कर रही थीं, लेकिन अप्रैल 2018 में चार कंपनियां और जुड़ गईं। इनमें जयपुर की फ्लोरा फूड, कोटा की कोटा दाल मिल, दिल्ली की सुरुचि फूड और नोयडा की बिहारी एग्रो फूड शामिल हैं।

प्रदेश के नगरीय निकायों में अब पहले पार्षद का चुनाव होगा, उसके बाद उन्हीं में से काेई एक महापौर और अध्यक्ष चुना जाएगा। कैबिनेट ने बुधवार को नगरीय विकास विभाग के नगर पालिक अधिनियम संशोधन प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। अगले साल मार्च में निकायों के चुनाव संभावित हैं। इसलिए सरकार ने 20 साल बाद अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुनने का फैसला लिया है। संशोधित अधिनियम के मुताबिक निकाय चुनाव में परिसीमन और चुनाव के बीच की अवधि 6 माह से घटाकर 2 माह की गई है। यदि पार्षद वित्त या अपराध संबंधी कोई गलत जानकारी देता या छिपाता है तो उसे छह महीने की सजा और 25 हजार रुपए का जुर्माना देना होगा। इसके अलावा छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंस में अस्पताल एवं अन्य भवनों के निर्माण के लिए स्वीकृत 1455 करोड़ रुपए की राशि का भी कैबिनेट में अनुमोदन किया गया।

महापौर चयन प्रक्रिया बदलने का भाजपा ने  विरोध किया। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि नई प्रक्रिया से पार्षदों की खरीद-फरोख्त बढ़ेगी।  जबकि खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल ने कहा कि अब गरीब भी महापौर बन सकेगा। उनका कहना था कि अभी तक राजनीतिक दलों में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सिर्फ पैसे वाले लोग ही लड़ पाते थे। सरकार के इस फैसले से गरीब कार्यकर्ता जो पार्षद का चुनाव लड़ता है वह महापौर बन पाएगा। जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि यदि पार्षदों द्वारा महापौर चुने जाने के फैसले का भाजपा विरोध कर रही है तो क्या वह निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशियों को पार्षद का चुनाव नहीं लड़ाएंगी।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष को सीधे पार्षदों द्वारा चुने जाने से जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त को बढ़ावा मिलेगा। हम मांग करते हैं कि जनता पूर्ववत महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत के अध्यक्ष को भी चुने।

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