भोपाल. पोषण आहार की सप्लाई ठेकेदार कंपनियों के हाथ से लेकर महिला स्व सहायता समूहों के फेडरेशन को देने प्रक्रिया में हो रही देरी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। मार्च 2018 में तय हुआ था कि नई व्यवस्था का काम इस तरह से हो कि छह माह में स्व सहायता समूहों के फेडरेशन पोषण आहार बनाने लगें। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को इसकी जवाबदारी दी गई, लेकिन एेसा नहीं हो पाया। इसी का फायदा उठाकर ठेकेदार कंपनियां लगातार आहार सप्लाई करती रहीं और 18 माह में उन्होंने सिर्फ पोषण आहार में ही करीब 1000 करोड़ रुपए का कारोबार कर लिया। दिसंबर तक यह काराेबार 1200 कराेड़ रु. का हाे जाएगा। इनमें वो तीन कंपनियां भी शामिल हैं, जो पूर्व में विवादित हुईं और इन्हीं की वजह से पोषण आहार की नई व्यवस्था बनाने की जोर-आजमाइश की गई।
स्व सहायता समूहों के फेडरेशन के प्लांट तैयार करने का काम पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के आजीविका मिशन को दिया गया, लेकिन वह समय पर काम नहीं कर पाया। देवास का पहला प्लांट ही वह फरवरी-मार्च 2019 तक शुरू कर पाया। उस समय भी वह दो जिलों से ही शुरुआत कर पाया था। इसके एक माह बाद धार के प्लांट ने काम किया और फिर होशंगाबाद प्लांट ने। अभी भी मिशन कुल मिलाकर 15 जिलों में ही पोषण आहार की सप्लाई दे पा रहा है जो करीब 4000 टन है। पूरे प्रदेश में कुल जरूरत का पोषण आहार 12 हजार टन तक लगता है।
महिला एवं बाल विकास विभाग का कहना है कि एक टन पोषाहार की कीमत 60 हजार रुपए से अधिक पड़ती है। इसमें परिवहन व अन्य खर्चे अलग होते हैं। हर माह प्रदेश में 12 से 13 हजार टन पोषण अाहार सप्लाई होता है, जिसकी कीमत 850 से 900 करोड़ तक होती है।
एमपी एग्रो न्यूट्री फूड प्रालि : एक साल इसके पास इंदौर-उज्जैन संभाग के जिले रहे। इसने अप्रैल 2018 से अप्रैल 2019 तक 800 से 1000 टन प्रतिमाह आहार की सप्लाई दी। कीमत 6-7 करोड़ है। एमपी एग्रोटॉनिक्स लिमिटेड : रीवा और सागर संभाग में हर माह 1400 से 1500 टन आहार की सप्लाई की और करीब 10 करोड़ रुपए का कारोबार किया। इसकी सप्लाई अभी भी जारी है।
एमपी एग्रो फूड इंडस्ट्रीज : ग्वालियर संभाग इनके पास है। यहां 1100 से 1200 टन की सप्लाई हर माह हुई। कंपनी ने हर माह करीब 8 करोड़ रुपए का कारोबार किया। जयपुर की फ्लोरा फूड : नर्मदापुरम संभाग में इस कंपनी ने 200 टन पोषाहार की सप्लाई की और 1.5 से दो करोड़ रुपए का कारोबार किया। नोएडा की बिहारी एग्रो फूड : 350 टन शहडोल संभाग में दिया। 2-3 करोड़ का कारोबार किया।
. कोटा की कोटा दाल मिल : इस कंपनी ने जबलपुर संभाग में 1600 टन पोषाहार सप्लाई किया और 10 से 11 करोड़ रुपए का कारोबार किया। दिल्ली की सुरुचि फूड : चंबल संभाग में 900 से 1000 टन पोषण आहार के जरिए करीब 6 करोड़ रुपए का बिजनेस किया।
अप्रैल-मई 2018 में नई व्यवस्था बनने तक पोषण आहार सप्लाई का काम कुछ समय के लिए पूर्व की तीन कंपनियों समेत सात कंपनियों को दिया गया। इन सातों कंपनियों ने हर माह मिलाकर करीब 55 से 60 करोड़ रुपए का पोषण आहार प्रदेश की आंगनबाड़ियों में सप्लाई किया। अप्रैल-मई 2018 से लेकर कंपनियों की सप्लाई अभी भी जारी है। साफ है कि सरकार ने नई व्यवस्था बनाने में इतना वक्त लगा दिया कि इन कंपनियों ने सितंबर तक ही करीब 1050 करोड़ का कारोबार कर लिया। चूंकि बुधवार को कैबिनेट ने इनका शॉर्ट टर्म ठेका दिसंबर तक बढ़ा दिया है, लिहाजा स्पष्ट है तब तक ये 1200 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार कर लेंगी।